नई दिल्ली, 14 नवंबर, 2016: वायु प्रदूषण के साथ सांस प्रणाली, दिल और दिमाग का दौरा जैसी बीमारियों की वजह से होने वाली बीमारियों और मौतों का सीधा संबंध जुड़ा हुआ है। अत्यधिक प्रदूषण जिसमें पीएम 2.5 की अत्यधिक मात्रा हो उसके संपर्क में आने से डायब्टीज़ का खतरा बढ़ जाता है। शोध में यह बात सामने आई है कि धूल कणों की सघनता 10 माईक्रोग्राम कम होने से जीवन दर 0.77 प्रतिशत प्रति साल बढ़ जाती है और संम्पूर्ण रूप से जीवन दर में 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होती है।
इस बारे में जानकारी देते हुए आईएमए के प्रेसीडेंट इलेक्ट एंव एचसीएफआई के प्रेसीडेंट डॉ केके अग्रवाल कहते है ने कहा, श्हालिया शोध के अनुसार थोड़े समय के लिए कार्बन मोनोआक्साईड, नाईट्रोजन डायआॅक्साईड और सल्फर डाईआॅक्साईड जैसे प्रदूषण कारकों के संपर्क में रहने से दिल के दौरे का ख़तरा बढ़ जाता है। यह ख़तरा 0.6 से लेकर 4.5 प्रतिशत तक आबादी को प्रभावित कर सकता ह। इस समय दिल्ली की आबादी सबसे ज़्यादा है, इस लिए वायु प्रदूषण के खतरों के बारे में जागरूक करना और सेहतमंद रहने के लिए उचित कदम उठाना बेहद आवश्यक है। जीवनशैली से जुड़े रोगों वाले मरीज़, बच्चे और उम्रदराज़ लोग हाई रिस्क में आते हैं। इन लोगों को अत्यधिक प्रदूशित माहौल में ज़्यादा समय नहीं रहना चाहिए, मास्क पहनना चाहिए और ज़्यादा थका देने वाली बाहरी गतिविधियों से बचना चाहिए। देश में प्रदूषण कम करना हर नागरिक का फर्ज़ है।
वायु प्रदूषण का संबंध बच्चों में फेफड़ों के विकास और बीमारियों से भी जुड़ा हुआ है। हवा की गुणवत्ता में सुधार से 11 से 15 साल तक के दमा वाले और बिना दमा वाले बच्चों में 1 सैकेंड में फोर्सड एक्सपीरेटरी और फोर्सड वाईटल कैपेसिटी में सुधार देखा गया है। प्रदूषित हवा और फेफड़ों की बीमारी में सीधे संबंध की पहचान हो चुकी है, लेकिन प्रदूषण और दमा के संबंध के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।