कॉर्ड ब्लड से 80 से अधिक बीमारियों का इलाज संभव होने के दावे को डॉक्टरों ने नकार दिया है। उनका कहना है कि इससे खुद का इलाज नहीं हो सकता। अगर किसी का कॉर्ड ब्लड प्रीजर्व है तो 95 पर्सेंट कंडीशन में मरीज के केस में उसका ब्लड काम नहीं करेगा। जन्म के वक्त बच्चे की नाभि में मौजूद कॉर्ड से यह ब्लड प्रीजर्व किया जाता है।
डॉक्टरों का कहना है ज्यादातर बीमारियां जेनेटिक होती हैं, जिससे कॉर्ड ब्लड के यूज से फायदा नहीं होता। देश में अब तक कॉर्ड ब्लड से सिर्फ 10 ट्रांसप्लांट हुए हैं। उनका दावा है कि विज्ञापनों में इसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। सचाई लोगों को नहीं बताई जा रही। ऐसे में अधिकतर प्रीजर्व कॉर्ड ब्लड बेकार पड़े हुए हैं।
मेंदातां के पीडिएट्रिक हीमैटोलॉजिस्ट डॉक्टर एसपी यादव ने कहा कि लोगों में भ्रम पैदा किया जा रहा है, यह सही नहीं है। कॉर्ड ब्लड प्रीजर्व करने वाली कंपनियों को सच बताना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी इसे बच्चे के लिए अमृत बताया जा रहा है। कहा जाता है कि यह उसकी जान बचाने में मददगार होगा। इसके लिए 70 हजार रुपये भी लिए जाते हैं, ताकि कंपनी उसे प्रीजर्व रख सके। 95 पर्सेंट मामले में यह बेकार हो जाता है और एक दिन कूड़े में चला जाता है।
डॉक्टर भावना अरोड़ा ने कहा कि कॉर्ड ब्लड बैंक कई तरह के हैं। एक प्राइवेट होते हैं। देश में ऐसे सात बैंक हैं। यह बैंक आपके बच्चे का
कॉर्ड ब्लड बैंक में प्रीजर्व रखते हैं और इसकी एवज में लगभग 70 हजार रुपये लेते हैं। दूसरा पब्लिक कॉर्ड ब्लड बैंक है, जो आपके बच्चे का कॉर्ड आपकी मर्जी से लेते हैं। इसके बदले कोई पैसा नहीं लिया जाता। बैंक वाले बाद में इसे बेच सकते हैं। ऐसे तीन बैंक देश में हैं, जिसमें एक कॉर्ड ब्लड 12 से 18 लाख रूपये में बेचा जाता है।
डॉक्टर यादव का कहना है कि कॉर्ड ब्लड से बीमारी ठीक होने का सिस्टम अपने से ज्यादा यह दूसरे में कारगर है। यही वजह है कि दुनिया भर में अनरिलेटेड कॉर्ड ब्लड का यूज हो रहा है और अपने देश में यह सिस्टम है ही नहीं। जरूरी है कि कॉर्ड ब्लड को पुलिस सिस्टम के तहत तैयार किया जाए। इससे बैंक में जमा कराने वाले कॉर्ड ब्लड किसी दूसरे के काम आ जाए। इसी संदर्भ में देश में पहली बार माई कॉर्ड ने पूल प्लान की शुरुआत की है।