विश्व फेफड़ा कैंसर दिवस एक अगस्त को
नई दिल्ली
दिल्ली में पैदा होने वाला हर नवजात रोजाना दस सिगरेट के मुकाबले का जहरीला धुंआ सांस के जरिए अंदर ले रहा है। नवजात ही नहीं, दिल्ली के प्रदूषण का स्तर जिस दिन 250 पीएस या उससे अधिक पाया जाता है उस दिन यहां रहने वाला हर व्यक्ति दस सिरगेट के मुकाबले का वायु प्रदूषण इंहेल कर रहा होता है। यही वजह है कि दिल्ली में पिछले दस साल में फेफड़े के कैंसर के मामले बढ़ गए है। लंग्स केयर फाउंडेशन, सरगंगाराम अस्पताल, महाजन इमेजिन और यूवीकैन के सहयोग से सरगंगाराम अस्पताल में मंगलवार को बीटलंग्सकैंसर हैश टैक की शुरूआत की।
इस अवसर पर अस्पताल में 150 मरीजों पर किए गए सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए। अस्पताल के रोबोटिक सर्जन और सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी के प्रमुख डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि फेफड़े के कैंसर के संदर्भ में हम पिछले कुछ सालों से चौंकाने वाले आंकड़े देख रहे हैं। 1950-60 के दशक के एक अध्ययन का हवाला देते हुए डॉ. अरविंद ने कहा कि एम्स द्वारा किए गए एक अध्ययन में उस समय चालीस साल से कम उम्र के मरीजों की संख्या जीरो थी। जबकि वर्ष 1991-92 के आंकडों में फेफड़े के कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ गई। हाल ही में हुए अध्ययन में पाया गया कि 20 से 30 साल की आयु वर्ग के पांच प्रतिशत युवाओं में फेफड़े का कैंसर है यह वह युवा हैं जिन्होंने कभी सिगरेट का सेवन तक नहीं किया। चेस्ट फिजिशियन डॉ. नीरज जैन ने बताया कि फेफड़े के कैंसर के 150 मरीजों में 75 मरीज ऐसे देखे गए थे जिन्हें टीवी नहीं थी और उन्हें टीबी की दवा दी गई। चिकित्सकों के अनुसार फेफड़े के कैंसर और टीबी के संक्रमण के लक्षण एक जैसे होते हैं कई बार शुरूआत चरण में लक्षण भी सामने नहीं आते। इसलिए ऐसे प्रदूषण, पैसिव स्मोकिंग, निर्माणाधीन इमारतें या ऐसे किसी भी हाई रिस्क जोन में रहने वाले लोगों को स्क्रीनिंग करा लेनी चाहिए। पहले चरण में पहचाने गए फेफड़े के कैंसर का शत प्रतिशत इलाज संभव है। मेडिकल ऑनकोलॉजिस्ट डॉ. संयम अग्रवाल ने बताया कि अब बाजार में अधिक बेहतर और टारगेटेट दवाएं उपलब्ध है लो डोज सीटी स्कैन जांच के मरीज को दवाओं से भी ठीक किया जाता है। यह दवाएं इम्यूनो थेरेपी पर आधारित होती है, जिसमें ट्यूमर या सेल्स के प्रोटीन के जीन को पहचान कर उसके एंटी मॉलीक्यूल को विकसित कर दवाएं बनाई जाती है, यह दवाएं कैंसर युक्त सेल्स पर ही असर करती हैं और बाकी सेल्स को क्षतिग्रस्त नहीं होने देतीं।
लो डोज सीटी से जांच संभव
डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि आधुनिक लो डोज सीटी स्कैंन जांच से फेफड़े के कैंसर के प्रारंभिक चरण में पहचाना जा सकता है। हालांकि चिकित्सक यह जांच सभी के लिए जरूरी नहीं बताते, बावजूद इसके जो रिस्क जोन में है या जिन्हें लंबे समय से टीबी जैसे शुरूआती लक्षण है, ऐसे लोगों को बचाव के लिए लो डोज सीटी जांच करा लेनी चाहिए, जिससे सही समय पर इलाज शुरू किया जा सकता है।