महिलाओकी प्रेग्नेंसी से जुड़ी कई समस्याओ का इलाज लेप्रोस्कोपिक विधि से किया जा सकता है, इसमें बार बार गर्भपात, अधिक में प्रेग्नेंसी की समसस्या जैसे एंडोमेरिसॉटिक और हिस्टेक्टॉमी आदि परेशानी शामिल है, अधिक उम्र में विवाह करने वाली महिलाओ को सैंडविच थेरेपी की मदद से संतान सुख दिया जा सकता है, जिसमे महिलाओ की ओवरी की अंदरूनी सतह पर अंडे जम जाते है. एहम यह है की इन परेशानियों में महिलाये अब तक आईवीएफ और सेरोगेसी को ही अपनाती थी.
सनराइज अस्पताल ने इस बाबत दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया है, जिसमे देश विदेश के ५०० से अधिक डॉक्टर्स शामिल होंगे, अस्पताल की सीनियर लप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ निकिता त्रेहन ने बताया कि ३० से ४० की उम्र के बीच कंसीव करने की कोशिश करने वाली ४० प्रतिशत महिलाओ में एंडोमेटेरिसोस्टिक की समस्या देखी जाती है, जिसमे पीरियड के समय बच्चेदानी की अंदरूनी सतह पर खून जमा हो जाता है, जो बाद में फ़िब्रोड्स बन जाते है. ऐसे में महिलाओ को पीरियड और इंटरकोर्स में तेज दर्द होता है. ऐसी महिलाओ कन्सीव नहीं कर पति है और यही कंसीव कर भी लेते है तोह एबॉर्शन हो जाता है. सनराइज अस्पताल द्वारा विकसित सैंडविच थेरेपी की मदद से लैप्रोस्कोपिक विधि से सीओटू लेज़र बीम किरणों से बच्चेदानी के आस पास जमा खून को साफ़ किया जाता है, इसके बाद छह महीने में एक बार दिए जाने इंजेक्शन की मदद से महिला एक साल के भीतर कंसीव कर सकती है. एहम यह है की इसमें दोबारे खून जमा होने की सम्भावना न के बराबर होती है. मालूम हो कि स्कार लेस इलाज के श्रेणी में अस्पताल हिस्टेक्टॉमी यानि बच्चेदानी निकलने के इलाज के लिए भी लैप्रोस्कोपिक विधि अपनाता है, जिससे सर्जरी के बाद पेट पर कोई निशान नहीं रह जाता है. अस्पताल कि लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ अजय अग्रवाल ने बताया की ज्यादातर चिकित्स्को को फर्टिलिटी एन्हान्सिंग के बारे में नहीं पता इसमें पुरुष या महिला में संतान न होने का पता लगाकर लेप्रोस्कोपिक विधि से बिना ओपन सर्जरी किये इलाज किया जा सकता है. सात से दस प्रतिशत महिलाओ में एग कम होने की शिकायत होती है, जबकि इसके तरह पुरुषो में स्पर्म कम होने से कंसीव करने में दिक्कत आती है, डॉ निकिता ने बताया, आईवीएफ या टियूब बेबी को अंतिम ऑप्शन मान कर चलना चाहिए जबकि कंसीव करने के सारे रास्ते बंद हो गए हो.
क्या है सैंडविच थेरेपी
लेप्रोस्कोपी और लेज़र बीम किरणों का एकसाथ इस्तेमाल करके एंडोमेटेरिसोस्टिक के दौरान बच्चेदानी के भीतर जमा खून को हटाया जाता है, दो से तीन चरण में किये गए इस इलाज के सभी चरण को पूरा करने कि बाद एक से डेढ़ साल में महिला कंसीव कर सकती है, एहम यह है की इस विधि में इलाज से दोबारे सिस्ट या फ़िब्रोइड बनने का खतरा काम हो जाता है. एंडोमेटेरिस्टोस्टिक में अब तक यूटराइन आर्टरी एम्बोलोसिस का इस्तेमाल किया जाता था, जिसके बाद कंसीव करने की संभावना कम हो जाती थी, मालूम हो की अस्पताल द्वारा विकसित एल यू ए एल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अरब देशो में भी हो रहा है. शनिवार से शुरू दो दिवसीय कांफ्रेंस में ४७ लाइव सर्जरी की जाएँगी.