
- मेनोपॉज के पड़ाव में जरूरी है परिवार का साथ
- राम मनोहर लोहिया अस्पताल और मेनोपॉज सोसाइटी ऑफ इंडिया ने मेनोपॉज पर आयोजित किया सेमिनार
नई दिल्ली
परिवार की सारी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद 53 वर्षीय रजनी ने सोच रखा था कि अब पति के साथ भरपूर समय बिताएगी, तीन बच्चों की परवरिश ने उन दोनों के बीच का प्यार लगभग खत्म कर दिया था। बेटी की शादी हो चुकी थी और पति काम के सिलसिले में अकसर टूर पर रहते थे, घर में अलजाइमर के शिकार सास ससुर, इस बीच रजनी के पति के ऑफिस से किसी ने बताया कि रमेश का उसकी ऑफिस की कलीग के साथ चक्कर है, इसी वजह से वह अकसर घर के बाहर भी रहते हैं, रजनी को अंदर की अंदर यह चिंता सताएं जा रही थी कि जीवन के इस पड़ाव में जबकि उसे पति और परिवार का सबसे अधिक सहयोग चाहिए, पति ने कोई और सहारा ढूंढ लिया, मानसिक तनाव रजनी के मन में धीरे धीरे घर किए जा रहा था फिर एक दिन बेहोश होने पर पड़ोसियों ने डॉक्टर के पास पहुंचाया, पता चला कि रजनी सिवियर डिप्रेशन का शिकार है, जिसका असर उनके शारीरिक स्वास्थय पर भी पड़ रहा है।
तीन साल पहले ही रजनी के मेनोपॉज का समय पूरा हुआ, यह बात उसने अपने पति रमेश को भी बताई हालांकि रमेश ने पहले उसका ढांढस बंधाया और कहा कि यह सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन धीरे धीरे रमेश का रजनी में रूझान कम होने लगा, वह बिस्तर भी एक साथ नहीं सोते थे, देर रात काम करने के बहाने तो कभी ऑफिस के काम से बाहर जाने के बहाने रमेश रजनी से दूर दूर रहने लगे।
रजनी एक उदाहरण मात्र है, मेनोपॉज का पड़ाव अधिकांश महिलाओं में तनाव का बोझ लेकर आता है, जो समय उन्हें खुद पर ध्यान देने पर बिताना चाहिए, उस समय में वह अकेलापन अलगाव और तिरस्कृत हो जाने जैसा महसूस करती हैं। राममनोहर लोहिया अस्पताल और इंडियान मेनोपॉज सोसाइटी के सहयोग से इस विषय के हर पहलूओं पर चर्चा की गई। आरएमएल अस्पताल के निदेशक डॉ अशोक कुमार ने बताय के मेनोपॉज सास्वत सत्य है, जो हर महिला को किसी न किसी दिन फेस करना है, अब प्रश्न यह उठता है कि हम इस फेज को किस तरह गुजारना चाहते हैं, मानसिक और शारीरिक परेशानियों के बीच इस समय महिलाओं को इमोशनल सपोर्ट की अधिक जरूरत होती है। इसके लिए आरएमएल अस्पताल ने वर्ष 2018 में विशेष ओपीडी की शुरूआत की गई, गाइनी विभाग में हर मंगलवार को दोपहर बाद मेनोपॉज की परेशानियों से जूझ रही महिलाएं संपर्क कर सकती हैं।
इंडियन मेनोपॉज सोसाइटी की चेयरपर्सन डॉ रागिनी अग्रवाल ने बताया कि भारत में प्री मेनोपॉज का समय महिलाओं में 47 से 55 उम्र के बीच का माना जाता है, जबकि विदेशों में यह अलग अलग है, भारत में अब पीरियड्स जल्दी शुरू भी हो रहे हैं और जल्दी खत्म भी, हमारे पास आने वाले अधिकांश दंपतियों की यह शिकायत होती है कि मेनोपॉज के बाद महिलाओं की रूचि सेक्स में कम हो जाती है, वैजाइना में सूखापन आ जाने के कारण वह असहज हो जाती है, जिससे पुरूष की अरूचि पैदा होने लगती है, लेकिन वह सेक्स की खोज फिर घर से बाहर करते हैं, ऐसे समय में एक महिला पूरी तरह टूट जाती है। हम यह कहना चाहते हैं कि सेक्स डिजायर या सेक्स की इच्छा कम हो जाना दोनों में ही उतना ही स्वाभाविक है, लेकिन महिलाएं ही इसके लिए खुद को हीन समझने लगती है।
ऐसे दंपतियों की काउंसलिंग की जाती है, और महिलाओं को सुझाव दिया जाता है कि वह कुछ समय अपने लिए भी निकाले, अपने शौक को पूरा करें, अब यह समय उनका अपना है, हां एक बात और मेनोपॉज के गोल्डेन समय में आर्थिक रूप से मजबूत होना भी जरूरी है। महिलाओं को एस्ट्रोजन से बना हुआ माना जाता है, उम्र बढ़ने के साथ एस्ट्रोजन हार्मोंन्स की कमी होने लगती है, जिसका असर नियमित मासिक धर्म पर पड़ता है और मेनोपॉज यानि मासिक रक्तस्त्राव का पॉज हो जाना या रूक जाना कहा जाता है।

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