नई दिल्ली
कॉरपोरेट और अकादमी में काम करने वाली महिलाएं तनाव का शिकार हो रही हैं। मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की कामकाजी महिलाओं पर किए गए सर्वे से यह बात सामने आई है। जिसमें कहा गया है कि मानसिक स्वास्थ्य महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, पुरूषों के एवज में महिलाएं दोगुना अधिक तनाव को झेलती हैं। भारत में तनाव की वजह से 36.6 प्रतिशत महिलाएं आत्महत्या जैसा कदम उठाती हैं। जिनकी उम्र 18-39 साल के बीच है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ो के अनुसार तनाव को लेकर सामाजिक बाध्यता के कारण डिप्रेशन में महिलाएं सहायता के लिए किसी से अपनी परेशानी साझा भी नहीं कर पाती।
आदित्य बिड़ला एजूकेशन ट्रस्ट द्वारा जारी एम पॉवर सर्वे में महिलाओं के तनाव रूपी अदृश्य संघर्ष पर एक रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट के आधार पर महिलाओं के तनाव को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाने की सख्त जरूरत पर बल दिया गया। कॉलेज, कॉरपोरेट, ग्रामीण क्षेत्र और सैन्य क्षेत्र में काम करने वाली 1.3 मिलियन महिलाओं को सर्वे में शामिल किया गया, जिनसे तनाव के संदर्भ में उनके व्यक्तिगत और प्रोफेशनल जीवन के बारे में पूछा गया।
एमपॉवर द सेंटर हेड की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ हर्षिदा भंसाली ने कहा कि मुंबई में महिलाएं मानसिक तनाव की गंभीर अवस्था से गुजर रही हैं, आपसी रिश्तों से जुड़े तनाव से लेकर, अलगाव, भावनात्मक पीड़ा सहित बच्चों की परवरिश संबधी कई तरह के तनाव महिलाओं की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रहे हैं, वित्तीय फैसलों की स्वतंत्रता, सिंगल पैरेंटिंग, प्रजनन क्षमता सहित उम्र के साथ होने वाली हार्मोनल बदलाव महिलाओं को तनाव का शिकार बना रहे हैं। महिलाओं की तरक्की और आत्मनिर्भरता के बीच मानसिक स्वास्थ्य बेहतर न होना कई महिलाओं में साइलेंट संघर्ष बन रहा है। कई महिलाएं, अक्सर पारिवारिक और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच प्राथमिकता से वंचित रह जाती हैं। इसलिए महिलाओं में तनाव के स्तर को देखते हुए सही समय पर कदम उठाए जाने जरूरी हैं। उचित सहयोग से, चाहे वह थेरेपी के माध्यम से हो, मनोवैज्ञानिक देखभाल के माध्यम से हो, या सामना करने की रणनीति के निर्माण के माध्यम से हो – महिलाएं अपने भावनात्मक स्वास्थ्य पर नियंत्रण पा सकती हैं।
सर्वेक्षण के मुख्य बिंदु
- प्रत्येक दो में एक महिला क्रानिक या लंबे समय से तनाव की शिकार हैं, जिसकी वजह वर्क व लाइफ बैलेंस के साथ, सामाजिक और वित्तीय दवाब है।
- तनाव के कारण 47 प्रतिशत महिलाएं इंसोमेनिया या नींद नहीं आने की समस्या की शिकार हैं, 18 से 35 साल की इन महिलाओं में तनाव उनके भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
- 41 प्रतिशत महिलाएं सामाजिक अलगाव की वजह से सोशल आइसोशल झेल रही है, उनका बहुत कम या सीमित सामाजिक दायरा है।
- अकादमी और वर्क प्लेस प्रेशर की वजह से 38 प्रतिशत महिलाएं अत्यधिक तनाव और भविष्य में कैरियर की चिंता से परेशान हैं।