फेसबुक-ट्विटर से लग सकता है दिल की बीमारी का पता

fbलंबे समय तक फेसबुक और ट्विटर पर नकारात्मक पोस्ट आपके दिल के लिए खतरा है। दिल की बीमारी को लेकर किए जाने वाले अध्ययन में पहली बार सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिए व्यवहार को समझने की कोशिश की गई है। छह से आठ महीने के अध्ययन में देखा गया कि सोशल और ट्विटर पर व्यक्ति के व्यवहार का असर उसके असल जीवन पर भी पड़ता है, नकारात्मक सोच वाले छह प्रतिशत लोगों को दिल की बीमारी के करीब देखा गया।
मैक्स सुपरस्पेशलिटी अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मनोज कुमार ने बताया कि दिल की बीमारियों के शिकार मरीजों की केस हिस्ट्री जानने के लिए अब तक लाइफ स्टाइल के जुड़ी कई चीजें जैसे, एल्कोहल का इस्तेमाल, सिगरेट की आदत, व्यायाम की कमी, डायबिटिज और अधिक वसा का सेवन आदि को शामिल किया जाता था। लेकिन पहली बार मनोचिकित्सीय सेहत को जानने के लिए 20 से 40 साल के लोगों को फेसबुक ट्विटर पर फॉलो किया गया। पाया गया कि छह से आठ महीने तक लगातार सामाजिक मंच पर नकारात्मक विचार रखने वाले लोगों में एंजाइना की शिकायत देखी गई। जबकि मनोरंजक चीजें पोस्ट करने वाले लोग स्वस्थ देखे गए। 20-30 साल की अपेक्षा 35 से 40 साल के लोगों के दिल पर नकारात्म पोस्ट का असर अधिक देखा गया। हालांकि चिकित्सकों का कहना है कि फिलहाल अध्ययन को प्राथमिक चरण पर किया गया है, जिसमें मनोवैज्ञानिक स्थिति को दिल के खतरे के साथ जोड़कर देखा गया है। मालूम हो कि चिकित्सकों के समूह से लगातार आठ महीने तक ऐसे लोगों को फेसबुक पर जोड़ा और क्लीनिकल परीक्षण के तहत इनके हर एक पोस्ट का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया।

तीन महीने तक बंद कराया फेसबुक अकाउंट
गुड़गांव की एक निजी कंपनी में काम करने वाले उदित शर्मा के इलाज के लिए उनके फेसबुक ट्विटर एकाउंट को तीन महीने के लिए बंद कराया गया। दरअसल उदित कारपोरेट कंपनी के तनाव की सारी खीज फेसबुक पर अपनी पोस्ट के जरिए निकालते थे, अस्पताल की ओपीडी में नियमित जांच के लिए आने पर उनका कोलेस्ट्राल स्तर बढ़ा हुआ देखा गया, जिसके बाद चिकित्सकों ने उनसे उनकी सोशल नेटवर्किंग साइट की जानकारी ली। चार महीने के गहन परीक्षण के बाद उदित का निष्क्रिय करने को कहा गया। इसकी जगह उदित को कुछ दिन के लिए योगा की सलाह दी गई।

कैसे हुआ अध्ययन
ओपीडी में नियमित स्वास्थ्य जांच के लिए आने वाले मरीजों में से 200 का चयन किया गया। इसमें से ऐसे लोगों को शामिल किया गया जिनका कोलेस्ट्राल स्तर सामान्य से कुछ अधिक देखा गया। आठ महीने तक सोशल नेटवर्किंग पर उन्हे फॉलो किया गया। इसके बाद दोबारा कोलेस्ट्राल जांचा गया। अध्ययन में शामिल मनोचिकित्सकों की टीम ने देखा कि नकारात्मक पोस्ट खून में खुश रखने वाले डोपामाइन का स्तर पर कम कर देती है।

प्रतिशत में अध्ययन के आंकड़े
-नकारात्मक पोस्ट वाले छह प्रतिशत दिल की बीमारी के करीब
-जिसमें चार प्रतिशत को एंजाइना या सीने में दर्द की समस्या
-दो प्रतिशत को गहरी सांस लेने में कठिनाई, कोलेस्ट्राल की मात्रा ज्यादा
-20-30 साल की उम्र के युवाओं पर नहीं हुआ अधिक असर
-30-40 साल के लोगों पर पोस्ट का असर व्यक्तिगत जीवन पर देखा गया
नोट- अध्ययन में शामिल लोगों की दिनचर्या से जुड़ी अन्य बातों पर भी ध्यान दिया गया

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