
पीजीआई में क्लीनिकल न्यूट्रिशन अपडेट का आयोजन
विशेषज्ञों ने जीवनशैली रोगों के नियंत्रण में पोषण और डाइट थेरेपी की भूमिका को बताया अहम
लखनऊ
संजय गांधी पीजीआई के पोषण विभाग, इंडियन एसोसिएशन फॉर पैरेन्टेरल एंड एंटरल न्यूट्रिशन, और पोषण धारा एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “क्लीनिकल न्यूट्रिशन अपडेट” कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने पोषण और जीवनशैली में बदलाव के ज़रिए जीईआरडी, मोटापा और मेटाबोलिक रोगों के प्रभावी नियंत्रण की आवश्यकता पर बल दिया।
कार्यक्रम में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के प्रो. अंशुमान एल्हेंस ने बताया कि गैस्ट्रोइसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज (जीईआरडी) एक आम लेकिन गंभीर समस्या है, जिसकी रोकथाम केवल दवाओं से नहीं, बल्कि संतुलित आहार और जीवनशैली में सुधार से संभव है। उन्होंने मरीजों को तैलीय, मसालेदार और अम्लीय खाद्य पदार्थों से परहेज, भोजन के बाद कम से कम दो घंटे तक न सोने, ऊँचा तकिया इस्तेमाल करने और तंबाकू-शराब से दूरी बनाए रखने की सलाह दी। प्रो. एल्हेंस ने मोटापे को जीईआरडी का प्रमुख कारण बताया।
न्यूरोलॉजी विभाग के प्रो. वीके पालीवाल ने कीटोजेनिक डाइट और इंटरमिटेंट फास्टिंग के लाभों को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि “16:8 फास्टिंग”, सप्ताह में दो दिन कम कैलोरी वाला आहार और कीटोजेनिक डाइट जैसे उपाय न केवल मोटापे में राहत देते हैं, बल्कि मेटाबोलिक सिंड्रोम और टाइप-2 डायबिटीज़ में भी कारगर हैं। उन्होंने समझाया कि कीटोजेनिक डाइट के दौरान शरीर फैट को ऊर्जा के रूप में उपयोग करता है, जिससे मस्तिष्क संबंधी विकारों में भी लाभ देखा गया है।
इस अवसर पर डॉ. प्रेरणा कपूर और कार्यक्रम की आयोजक डॉ. रमा त्रिपाठी ने भारत में बढ़ते मोटापे पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में करीब 13.5 करोड़ लोग मोटापे से ग्रस्त हैं। हर चार में से एक वयस्क और पाँच में से एक शहरी बच्चा इस समस्या का शिकार है। इससे न केवल डायबिटीज और हृदय रोग, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ पी भट्टाचार्य ने बच्चों में कब्ज के परेशानी पर जानकारी दी।
कार्यक्रम में पीजीआई निदेशक प्रो. आरके धीमन, प्रो. एमएलबी भट्ट और प्रो. एलके भारती ने पुरातन आहार प्रणाली को अपनाने की अपील की। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में चिकित्सक, अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे।