
नई दिल्ली,
प्रीक्लेम्सिया प्रेगनेंसी में होने वाली एक गंभीर समस्या है। जो गर्भधारण के 20वें हफ्ते में शुरू होती है, जबकि गर्भ में नवजात शिशु का वजन बढ़ने लगता है। क्योंकि गर्भस्थ शिशु मां के पेट के एक बड़े हिस्से को कवर करता है, इसलिए गर्भधारण के समय प्रीक्लेम्सिया की समस्या हो जाती है, जिसमें गर्भवती महिला को हाई ब्लड प्रेशर या हाईपरटेंशन बना रहता है। प्रीक्लेम्सिया किडनी और लिवर के प्रभावित होने की स्थिति भी होती है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के प्रीक्लेम्सिया पर जागरूकता कार्यकम का आयोजन किया गया।
रेडियोलॉजी विभाग के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में एचओडी प्रोफेसर शिवानी मेहरा ने बताया कि लंबे समय पर प्रीक्लेम्सिया का बने रहा नवजात की सेहत पर भी असर डालता है। कुछ मामलों में महिलाओं के यूरीन में प्रोटीन भी आने लगता है जो कि किडनी के क्षतिग्रस्त होने का पहला चरण है। प्रीक्लेम्सिया के प्रमुख लक्षण में सिर दर्द, आंखों की रोशनी कम होना, धुंधला दिखना, पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द का बने रहना, जुखाम बने रहना, हाथ और पैरों में सूजन, एकदम से वजन बढ़ना आदि शामिल हैं।
खतरे के अन्य कारक
- पहली बार गर्भधारण करने पर यह समस्या अधिक देखी जाती है
- पूर्व में माता या घर में किसी और को यह समस्या होना
- गर्भ में जुड़वा या इससे अधिक भ्रूण शिशु का होना
- प्रेगनेंसी से पहले हाईबीपी, डायबिटिज या किडनी की समस्या होना
- मोटापा
- अधिक उम्र या 35 साल से अधिक आयु में गर्भधारण करना
कब होती है खतरे की संभावना
यदि सही समय पर प्रीक्लेम्सिया का इलाज नहीं किया जाएं तो कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। एकलेम्सिया- इसे सीजर या भी झटके आना भी कहा जाता है। इसके साथ प्रीक्लेम्सिया में गर्भस्थ शिशु के समय पूर्व जन्म की भी संभावना रहती है।
क्या है इलाज
- मामूली या शुरूआती स्तर पर प्रीक्लेम्सिया की पहचान होने पर सामान्य दिनचर्या में बदलाव से इसे सही किया जा सकता है।
- जबकि गंभीर अवस्था में मरीज को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत होती है।
- नवजात का अतिशीघ्र जन्म ही गर्भवती महिला को प्रीक्लेम्सिया से छुटकारा दिला सकता है।