- क्यों होता है बच्चों में जेनेटिक ब्लड डिस्आर्डर?
नई दिल्ली
मां बाप और घर के दुलारे बच्चे को जन्म से किसी तरह का ब्लड डिस्आर्डर हो तो खुशियों पर चिंता के साये छा जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ साथ ऐसे बच्चों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है, कहीं थोड़ा का झटका लगने पर अंदरूनी ब्लीडिंग हो जाती है तो कहीं बेहोश होकर गिरने का डर, यह डर अकसर उन बच्चों के साथ होता है जो जन्म के समय जेनेटिक ब्लड डिस्आर्डर थैलसीमिया, हीमोफीलिया या फिर सिकल सेल्स डिसीस, जिसमें खून में लाल रक्त कणिकाओं का बनना बंद हो जाता है, ऐसे में बच्चे हमेशा एनीमिया के शिकार रहते हैं। एक सर्वे के अनुसार हर चार में से एक बच्चा जेनेटिक ब्लड डिस्आर्डर का शिकार है।
अध्ययन के अनुसार जेनेटिक डिस्आर्डर के शिकार 51 प्रतिशत बच्चों की उम्र तीन साल से कम देखी गई, ऐसे बच्चों को इलाज की सही देखभाल के साथ ही विशेषज्ञों ने प्रीनेटल या गर्भ में शिशु के सही जेनेटिक जांच की पैरवी की है। लगभग तीन साल (2021 से 2024) तक चले अध्ययन में 12 साल की उम्र के 2000 बच्चों को शामिल किया गया। ये सभी बच्चे हीमोग्लोबिनोपेथी जो कि एक प्रकार का जेनेटिक रक्त विकार हैं के शिकार थे, इनमें से 28.4 प्रतिशत बच्चों को हीमोग्लोबिन डिस्आर्डर था, जिसमें क्रानिक एनीमिया, थकान, लंबाई देर से बढ़ना या नहीं बढ़ना आदि के साथ इंफेक्शन का खतरा अधिक होने जैसी समस्याएं देखी गईं। 38.7 प्रतिशत बच्चों को बीटा थैलसीमिया ट्रेट और 30 प्रतिशत बच्चों को सिकल सेल्स डिसीस व ट्रेट देखा गया। जिसकी बच्चों में अधिकता देखी जा रही है।
बीटा थैलसीमिया ट्रेट एक जेनेटिक डिस्आर्डर है, जिसमें शरीर में बहुत कम मात्रा में गुणवत्तापरक लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन होता है, हालांकि शुरूआत में इसकी पहचान नहीं होती है, ऐसा माना जाता है कि बच्चों में इस तरह के रक्त विकार के लिए माता या पिता में कोई एक वाहक होता है। इसके विपरीत सिकल सेल्स डिसीस में लाल रक्त कोशिकाओं में अनियंत्रित तरीके से बदलाव होता है, जिसकी वजह से लगातार दर्द बने रहना, संकमण होना और क्रानिक एनीमिया प्रमुख हैं। इसके शिकार 51 प्रतिशत बच्चों की उम्र तीन साल से कम होती है। विशेषज्ञ इस तरह के विकास से बचने के लिए प्री नेटल स्क्रीनिंग पर विशेष जोर देते हैं। इसके साथ ही गर्भधारण के समय ही सही जेनेटिक काउंसलिंग भी जरूरी बताई गई है।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि भारत के उत्तर पूर्व राज्यों के बच्चों में यह समस्या अधिक देखी गई, यहां सबसे अधिक 48.44 बच्चों में जन्मजात रक्त विकार हीमोग्लोबिन ई की समस्या देखी गई। जबकि मध्य भारत के 37.36 प्रतिशत बच्चों में सिकल सेल्स एनीमिया के मामले अधिक देखे गए। जबकि दक्षिण भारत के 34.09 प्रतिशत बच्चों में हीमोग्लोबिनोपैथीस की समस्या अधिक देखी गई। जबकि बीटा थैलसीमिया ट्रेट पश्चिमी और उत्तर भारत में अधिक देखा गया। अध्ययन देश की जानी माली लैबारेटरी मेट्रोपोलिस हेल्थ केयर द्वारा किया गया।
जन्मजात रक्त विकारों पर ध्यान देने की जरूरत
मेट्रोपोलिस हेल्थ केयर महाराष्ट्र व पूणे की लैबोरेटरी प्रमुख डॉ स्मिता सुडके ने बताया कि अध्ययन इस तरफ हमारा ध्यान खींचते हैं कि गर्भावस्था में जेनेटिक काउंसलिंग अत्यधिक जरूरी है। नवजात की सही समय पर स्क्रीनिंग में अत्यधिक कारगर है। इसके लिए अत्याधुनिक मॉलीक्यूलर डॉयग्नोसिस टूल्स जैसे शुगर सीक्वेंसिंग, गैप पीसीआर और नेक्सट जेनेरेशन टूल्स एजीएस आदि के प्रयोग से रक्त विकारों को गर्भधारण के कुछ ही महीनों में पहचाना जा सकता है और सही समय पर जांच से बीमारी के बोझ को कम संभव है।