प्रोस्टेट कैंसर के साल 2020 तक दूसरा सबसे आम कैंसर हो जाएगा

prostate cancer
World Famous Prof(Dr.)P.N.dogra ,Head of Dept. Urology,AIIMS (R) and Prof(Dr) Anup Kumar,Head of Dept. Urologyand Renal Transplant, VMNC and Safdarjang Hospital, addressing a press confrence on “edidemiology of Prostate Cancer in India ,to mark World Prostate Cancer Awareness month, in New Delhi on Tuesday 13-09-2016

नई दिल्ली: कैंसर का दूसरा सबसे आम कारण प्रोस्टेट कैंसर (पीसीए) है और यह दुनिया भर में पुरूषों की मौत का छठा सबसे प्रमुख कारण है। भारत में इस कैंसर की स्थिति काफी चिंताजनक है, इसलिए इस ओर पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है। आईसीएमआर व विभिन्न राज्यों की कैंसर रिजिस्ट्री के अनुसार भारतीय पुरूषों में ये दूसरा सबसे आम कैंसर है। भारत में प्रोस्टेट कैंसर के 100000 में 9 से 10 मामले पाए जाते है जो कि एशिया के अन्य भागों व अफ्रीका की तुलना में काफी ज्यादा है लेकिन यूरोप व अमेरिका से कम है।
भारत के शहरों जैसे दिल्ली, कोलकता, पुणे, तिरूअनंतपुरम में प्रोस्टेट कैंसर पुरूषों में पाया जाने वाला दूसरा मुख्य कैंसर है तो बैंगलरू और मुम्बई जैसे शहरों में तीसरा प्रमुख कैंसर है। भारत के अन्य पीबीआरसी में ये कैंसर टॉप दस कैंसर की सूची में शुमार है। पीबीआरसी में कैंसर के मामले लगातार और तेजी से बढ़ रहे है। इन आंकड़ों से ये अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2020 तक ये मामले दोगुने तक हो जाएंगे। कैंसर रिजिस्ट्री से पता चलता है कि दिल्ली के पुरूषों में पाएं जाने वाले कैंसर में प्रोस्टेट कैंसर दूसरा सबसे आम कैंसर है जो सभी तरह के कैंसर का लगभग 6.78 फीसदी है।
ये आंकडे खतरे की घंटी है और इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अनुसार दुनियाभर में प्रोस्टेट कैंसर का बोझ साल 2030 तक 1.7 मिलियन नए मामलों के साथ बढ़ सकता है और इससे होने वाली 499000 नई मौतों की संभावना है क्योंकि इस समय तक विश्व की जनसंख्या का उम्रदराज व विकास होना प्रमुख कारण है।
सरकार ने इस खतरे को भांप लिया है और इसी वजह से केंद्र ने प्रोस्टेट स्पेस्फिक ऐंटीजन (पीएसए) परीक्षण को अनिवार्य कर दिया है जिससे बीमारी की गंभीरता का पता चलता है। वैसे तो प्रोस्टेट कैंसर का इलाज कराने के लिए धन की जरूरत है लेकिन इसकी स्क्रीनिंग व इलाज केंद्र सरकार संचालित अस्पतालों जैसे आरएमएल, एम्स और सफदरजंग में मुफ्त है।
प्रोस्टेट कैंसर से जुड़े मुद्दों के प्रति जागरूक कराने के लिए हेल्थकेयर हितधारकों ने देशभर में सिंतबर व अक्टूबर का महीना प्रोस्टेट हेल्थ मंथ के रूप में रखा है। प्रेस कांफ्रेस संबोधित करते हुए सफदरजंग अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अनूप कुमार ने कहा कि 85 फीसदी कैंसर का इलाज दवाइयों से किया जा सकता है जबकि 10 से 15 फीसदी का इलाज सर्जरी से हो सकता है। बाइजीन प्रोस्टेटिक इनलारजमेंट सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है जिसमें उम्र के साथ आमतौर पर 40 साल के बाद प्रोस्टेट का आकार बढ़ता है और इससे एल यू टी एस यानि कि मूत्रयोनि के निचले हिस्से में लक्षण उभरकर आ सकते है।
इस बारे में एम्स के यूरोलॉजी के एचओडी डॉक्टर पी एन डोगरा ने कहा कि अस्वस्थ जीवनशैली से मोटापा बढ़ता है जो प्रोस्टेट कैंसर होने की संभावना को बढ़ा सकता है। वैसे ये आमतौर पर अनुवांशिक देखा गया है। वर्तमान स्थिति में व्यावहारिक रूप से प्रोस्टेट कैंसर को रोकना मुमकिन नहीं है, हालांकि प्रोस्टेट से जुड़ी सेहत पर नज़र रखने से मदद मिल सकती है। अगर इस बीमारी का शुरूआती स्टेज पर ही पता चल जाएं तो इसका निश्चित उपचार करके रोगी को सही किया जा सकता है।
इसके अलावा अब मेटास्टेटिक प्रोस्टेट कैंसर से जुड़ी नई दवाइयां जैसे एनज़ालूटामाइड, एबीराटरवन भी उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि विभिन्न ट्रायलों से ये पता चला है कि फिनेस्टाराइड को अगर लंबे समय तक लिया जाएं तो ये प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में सक्षम है। इसी तरह कई अध्ययनों से पता चलता है कि लाइकोपीन से भी प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में मदद मिली है। फिलहाल प्रोस्टेट कैंसर ट्यूमर टीके विकसित करने के लिए अध्ययन किये जा रहे है।
डॉक्टरों का कहना है कि 50 साल से ज्यादा उम्र के एल यू टी एस लक्षणों से ग्रस्त रोगियों को साल में एक बार पी एस ए टेस्ट कराना चाहिए। अगर पारिवारिक इतिहास है तो 40 साल की उम्र से प्रतिवर्ष ये टेस्ट कराएं।
वार्षिक उम्र को नियमित (विश्व जनसंख्या) करे तो दिल्ली में प्रोस्टेट कैंसर के मामलों का दर 100,000 प्रति 10.66 है, जोकि दक्षिणी पूर्वी एशिया (8.3) और उत्तरी अफ्रीका (8.1) की तुलना में ज्यादा है लेकिन उत्तरी अमेरिका (85.6), दक्षिणी यूरोप (50.0) और पूर्वी यूरोप (29.1) से कम है और पश्चिमी एश्यिा (13.8) के साथ तुलनात्मक है।
डॉक्टर अनूप का कहना है कि पहले माना जाता था कि भारत में पश्चिमी देशों की तुलना में प्रोस्टेट कैंसर के मामले काफी कम है लेकिन गांव से शहरों की ओर बढ़ती जनसंख्या, बदलती जीवनशैली, बढ़़ती जागरूकता और मेडिकल सुविधाओं के आसानी से उपलब्ध होने के चलते प्रोस्टेट कैंसर के बढ़ते मामलों में आई तेज़ी का पता चला है और महसूस हुआ है कि हमारे यहां भी प्रोस्टेट कैंसर की दर पश्चिमी देशों से कम नहीं है। कैंसर रिजिस्टरियों से कुछ नई जानकारियां सामने आ रही है जिसे देखकर कहा जा सकता है कि आने वाले सालों में हमें इस कैंसर के मामलों में भारी तेज़ी देखने को मिल सकती है।
उन्होंने कहा कि भारत की सामान्य जनसंख्या और रिजिस्टरियों के अंतगर्त आने वाले क्षेत्रों से पता चलता है कि लोगों की जीवनशैली, खानपान और सामाजिक – आर्थिक परिवेश में तेज़ी से बदलाव आया है। बीमारी का पता लगाने वाली तकनीकों में सुधार हुआ है और अब लोगों को ये तकनीकें न सिर्फ उपलब्ध है बल्कि वह इस पर खर्च भी कर सकते है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर स्थिति वर्तमान जैसी ही रही जिसमें जीवन प्रत्याशा में लगातार वृद्धि, उम्र से जुडे मामले, रूग्णता व मृत्युदर बढ़ोतरी रही तो प्रोस्टेट कैंसर की ये बीमारी भविष्य में सार्वजिनक स्वास्थ्य समस्या बनकर उभरेगी।
इस बारे में डॉक्टर कुमार ने कहा कि नीति बनाने के लिए इस महामारी की सही व पूरी जानकारी होना बहुत महत्वपूर्ण है और संबंधित विभाग वैज्ञानिक व अनुभव के आधार पर योजना व रणनीति तैयार करे।

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