खाने में ज्यादा नमक को कहें ना

Say no to excess salt in food, Doctors were trained on low sodium salt substitute  (LSSS) 
  • लो सोडियम साल्ट सब्सिटिट्यूट पर चिकित्सकों को किया गया प्रशिक्षित
  • किडनी सपोर्ट नेटवर्क, सेपेन्स हेल्थ फाउंडेशन और लो साल्टर के सहयोग से आयोजित किया गया कार्यक्रम

नई दिल्ली,

घर का बना खाना हो, संरक्षित डिब्बा बंद खाना या फिर रेस्ट्रारेंट की मनपसंद डिश, हमारे नियमित खाने में नमक का प्रयोग जरूरत से अधिक किया जा रहा है, जो समय से पहले किडनी की तकलीफ बढ़ा रहा है, बीपी को अनियंत्रित कर रहा है और लिवर को समय से पहले कमजोर कर रहा है। नमक को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन और आईसीएमआर की डायटरी गाइडलाइन कहती हैं कि नियमित खाने में पांच ग्राम से अधिक नमक नही होना चाहिए और छह महीने से कम उम्र के नवजात को नमक की जरूरत ही नहीं है। इधर कुछ दिनों से सेंधा नमक का प्रयोग भी घरों में बढ़ गया है जिसमें आयोडीन की मात्रा लगभग न के बराबर होती है इसलिए चिकित्सकों ने इसके प्रयोग को भी सही नहीं बताया है।

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन और किडनी सपोर्ट समूहों द्वारा नमक के सीमित प्रयोग के लिए चिकित्सकों को जागरूक करने के उद्देश्य से डीएमए हाउस में कैपेसिटी बिल्डिंग कार्यक्रम का आयोजन किया। जिसका औपचारिक उद्घाटन देश में आयुष्मान भारत योजना शुरू करने में अहम भूमिका निभाने वाले, पोषण अभियान के सूत्रधार, नीति आयोग के सदस्य और एम्स के बालरोग विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ विनोद कुमार पॉल द्वारा किया गया। डॉ पाल ने कहा कि नमक को लेकर नेशनल एडवायजरी बनाने से भी अधिक जरूरी है कि हम अपने आसपास की खाने की आदतों में नमक की दखल को कम करें, रेस्ट्रा आदि में खाने की हर टेबल पर साल्ट सेकर या नमक की डिब्बी रखी होती हैं, इसके साथ ही अचार, पापड़ व चटनी आदि खाद्य पद्धाथों के माध्यम से हम तीन से चार गुना नमक का अधिक सेवन कर रहे होते हैं, जो समय से पहले हमें क्रानिक किडनी डिसीस और क्रानिक लिवर डिसीस का शिकार बना रही है। शुगर को लेकर नियमित मॉनिटरिंग स्वास्थ्य देखभाल में शामिल की गई है लेकिन किडनी की जांच की अभी तक ऐसी कोई वयवस्था नहीं है। किडनी और लिवर की नियमित जांच और बायोमार्कर जांच के साथ ही एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में भी प्रीवेंटिव हेल्थ के तौर पर नमक के कम उपयोग को शामिल किया जाना चाहिए। आरएमएल अस्पताल के पूर्व डीन और वर्तमान में पंजाब बाबा फरीद सिंह विश्वविद्यालय के चांसलर डॉ राजीव सूद ने बताया कि सोडियन पोटेशियम को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है लो सोडियम साल्ट सब्बसटिट्यूट नमक के कम सेवन के बेहतर विकल्प हो सकते हैं। नमक के अधिक सेवन का सीधा मतलब है किडनी द्वारा अधिक काम किया जाना, इसलिए समय रहते नमक के सेवन को नियंत्रित करना जरूरी है। डीएमए के अध्यक्ष डॉ गिरिश त्यागी ने बताया कि चिकित्सकों के लिए आयोजित कैपेसिटी बिल्डिंग कार्यक्रम में 140 चिकित्सकों ने भाग लिया। डॉ विजय खेर, डॉ मन्निका शर्मा, डॉ भरत शाह सहित डॉ अजय खेर ने सोडियम पोटेशियम के सीमित प्रयोग पर प्रजेंटेशन दिया।

तमिलनाडू में नमक के सीमित प्रयोग के लिए लोगों को जागरूकत करने वाले सेपियन्स हेल्थ फाउंडेशन के डॉ रंजन रविकांत ने बताया कि फाउंडेशन के प्रयास से नेशले ने अपने उत्पादों में नमक के प्रयोग को काफी कम किया, ऐसी अन्य कंपनियों में भी लो सोडियम साल्ट सब्सिटिट्यूट (Low Sodium Salt Substitute) के प्रयोग के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है।

 

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