नई दिल्ली
हमारे नियमित आहार में चावल का अहम योगदान होता है। पोषक तत्वों से भरपूर चावल शिशुओं से लेकर वृद्धों, गर्भावस्था और स्तनपान तक की सभी स्थितियों व आयु वर्ग के लिए फायदेमंद माना जाता है। लेकिन बीते कुछ सालों से चावल को लेकर कारपोरेट जगत डायटिशियनों से चावल के ग्लाइसिमिक इंडेक्स को या जीआई को लेकर भ्रम फैलाना शुरू कर दिया, मसलन चावल में मौजूदा स्टार्च मोटापा बढ़ाता है, इसके साथ ही डायबिटिज मरीजों के लिए भी चावल का प्रयोग सही नहीं बताया गया जबकि आयुर्वेद का हालिया शोध इस संदर्भ में बिल्कुल अलग है। शोध में पाया गया कि चावल से बनी कई रेसिपी रोगों को दूर भगाने में कारगर हैं। शोध के अंत में चावल की कई रेसिपी की विधि भी बताई गई है।
आयुष मंत्रालय और केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद ने आयुर्वेद अनुसंधान और आहार विज्ञान में जर्नल ऑफ ड्रग रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज नामक शोध पत्र जारी किया है, इसमें मुख्य रूप से आयुर्वेद आहार को केंद्र में रखा गया है। आयुर्वेद ने चावल के विभिन्न व्यंजनों के साथ-साथ इसके आहार विज्ञान और उपचार के विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया है। यह शोधपत्र आयुर्वेद के ग्रंथों से संकलित विभिन्न चावल-आधारित तैयारियों और पोषण संबंधी तथ्य पत्रों से अलग-अलग घटकों के आधार पर प्राप्त उनके पोषण संबंधी महत्व की एक शास्त्रीय समीक्षा प्रस्तुत करता है। शोधपत्र के अनुसार चावल और इसके व्यंजनों का प्रयोग बुखार, दस्त, उल्टी, अनिद्रा, मधुमेह, मोटापा और प्रसवोत्तर रोगों जैसी विभिन्न रोग स्थितियों के प्रबंधन के लिए एक चिकित्सीय आहार के रूप में किया गया है।
इस अध्ययन में कुल 33 व्यंजनों, उनकी तैयारी के तरीके, प्रसंस्करण, औषधीय क्रियाएं, पाचन पर प्रभाव (13 व्यंजन गुरु और 8 व्यंजन लघु), पोषण संबंधी महत्व के साथ चिकित्सीय संकेत और हाल के शोध अध्ययनों पर चर्चा की गई है। यह देखा गया है कि चावल के व्यंजनों को विभिन्न संयोजनों जैसे पानी, दालें, मांस, सब्जियां, फल, सूखे मेवे, दूध, चीनी, घी, दही और बाजरा में वर्णित किया जाता है। तैयारी और प्रसंस्करण के तरीके स्टार्च सामग्री और जीआई को प्रभावित करते हैं। चावल की विभिन्न रेसिपी बवासीर, दस्त, उल्टी, हिचकी, अस्थमा, त्वचा रोग, सर्दी, मधुमेह, तपेदिक, रक्तस्राव विकार, एडिमा, जलोदर, गाउटी गठिया, एरिज़िपेलस, एनीमिया, बुखार और अनिद्रा जैसी बीमारी की स्थिति में संकेतित हैं। यह प्रसवोत्तर रोगों और स्तनपान करती हैं।
आयुर्वेद के शोध के अनुसार चावल को पोषण संबंधी भोजन के रूप में उपयोग करने के बारे में गहन प्रतिक्रिया दी है, जो सिंथेटिक पोषण की जगह के लिए एक अच्छा विकल्प है। मालूम हो कि भारत में वर्षभर चावल का उत्पादन होता है। चावल एक वार्षिक अनाज है; लैटिन में ओरिज़ा सातिवा एल कहा जाता है। यह “पोएसी” परिवार से संबंधित है। यह मुख्य भोजन का एक प्रमुख स्रोत है और दुनिया की दो-तिहाई से अधिक आबादी पोषण के लिए इस पर निर्भर करती है। इसमें पोषण के साथ-साथ चिकित्सीय मूल्य भी होते हैं।
शोध के अनुसार उपयोग किए जाने वाले चावल के विभिन्न रूप हैं लाजा (धान चावल), शाली सक्तवा (छिलके रहित चावल), तंदुल काना (पीसा हुआ चावल), भृष्ट तंदुला (भुना हुआ चावल के दाने), और तंदुल-ओदकम (कच्चा चावल का पानी) (के, डीएस, पीआर, बीपी, एमडी, और एसडब्ल्यू) इनको अन्य दालों के साथ प्रयोग कर जीआई के प्रभाव को कम किया जा सकता है।