महिमा तिवारी
धूम्रपान की लत और बढ़ता प्रदूषण युवाओं की सेहत पर भारी पड़ रहा है। कम उम्र ही उनका दम फूलने लगा है। 60 साल के बाद होने वाली अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और सीओपीडी बामीरियां युवावस्था में ही फेफड़ों को कमजोर रही है।
इनमें सीओपीडी यानि क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic Obstructive Pulmonary Disease ) ऐसी गम्भीर बीमारी है जिसमें सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है। इस बीमारी से फेफड़े क्षतिग्रस्त हो जाते हैं जिससे सांस लेने में समस्या, खांसी साथ ही सीने में जकडऩ जैसी समस्या हो जाती है। बीमारी की गम्भीरता के प्रति लोगों को सजग करने के लिए हर साल नवंबर महीने के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है। इस साल यह दिवस 20 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस वर्ष विश्व सीओपीडी दिवस को ’अपने फेफड़ों की क्षमता को पहचाने’ के विषय के साथ मनाया जा रहा है। केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा सूर्यकान्त का कहना है कि वैसे तो प्रदूषण के कारण अब इन बीमारियों का खतरा हर उम्र के लोगों को हो गया है लेकिन युवा वर्ग में इसकी चपेट में अधिक आ रहे हैं। इसकी वजह है कि धूम्रपान की लत के साथ प्रदूषण का दुष्प्रभाव। वह कहते हैं कि अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और सीओपीडी इन तीनों ही बीमारियों के लक्षण काफी मिलते-जुलते हैं जिस कारण लोग इनमें अंतर नहीं समझ पाते और ठीक से इलाज नहीं कराते। अस्थमा जिसे दमा भी कहते हैं। यह बीमारी सांस की नलियों में सूजन के कारण होती है। इससे श्वसन मार्ग संकुचित हो जाता है। वहीं बलगम न निकलने के कारण मुंह से घर्र-घर्र की आवाज आती है। इसे ब्रोंकाइटिस कहते हैं। सीओपीडी बीमारी सीधे फेफड़े पर अटैक करती है। होने पर फेफड़ों में सिकुडऩ आ जाती है साथ ही सांस की नलियां भी सिकुडऩे लगती हैं। डा. सूर्यकान्त का कहना है पहले सीओपीडी केवल धूम्रपान करने वालों में ही देखी जाती थी वहीं अब प्रदूषण से भी यह बीमारी तेजी से बढ़ी है। इस बीमारी के लक्षण 40 वर्ष की उम्र के बाद दिखने लगते हैं। सबसे पहला लक्षण सुबह-सुबह खांसी आना होता है। इसके बाद धीरे-धीरे सर्दी के मौसम में और फिर बाद में साल भर खांसी आती रहती है। बीमारी बढऩे के साथ बलगम भी आने लगता है और सांस भी फूलने लगती है। डा सूर्यकान्त का कहना है कि सीओपीडी सिर्फ फेफड़े की ही बीमारी नही है, बल्कि बीमारी की तीव्रता बढऩे पर हृदय, गुर्दा व अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते है। शरीर कमजोर हो जाता है, भूख कम लगती है तथा हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं। इससे बचने के लिए जरूरी है कि 40 वर्ष के ऊपर के स्वस्थ्य लोग भी अपने फेफड़े की कार्यक्षमता जानने के लिए (पीएफटी)जांच करायें।
इन लक्षणों पर दें ध्यान
– बलगम वाली खांसी
– सांस लेते समय सीटी की आवाज आना
– छाती में घरघराहट महसूस होना
– सीने में जकडऩ
– सांस फूलना
– हार्ट बीट रुकना
– ऑक्सीजन के निम्न स्तर के कारण होंठों और नाखूनों का रंग नीला पडऩा.
– अत्यधिक थकान महसूस करना