नई दिल्ली,
सरकार वैसे तो 2030 तक तपेदिक यानि टीबी को देश से खत्म करने की बात कह रही हैं, लेकिन अब भी ग्रामीण इलाकों में प्रारंभिक चरण की टीबी की पहचान नहीं हो पा रही है, जिसकी वजह से लोग गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के एक ऐसे ही मरीज से हमारी मुलाकात हुई, जो लकवे की शिकार अपनी बहन का राममनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज कराने के लिए आए थे।
जिला रामपुर, काशीपुर छोटा विक्रम पुरी मोहल्ला में रहने वाले जाकिर ने बताया कि उनकी बहन को शुरूआत में तेज बुखार हुआ, उल्टियां बंद नहीं हो रही थी, कुछ दिनों बाद बुखार दिमाग में चढ़ गया, इस दौरान रामपुर के सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों ने उन्हें वायरल बुखार की दवा दी, टीबी की जांच फिर भी नहीं की गई। छह महीने बुखार का इलाज कराने के बाद भी जब बह आशिया की हालत दिन पर दिन बिगड़ती गई तो जाकिर उसे लेकर दिल्ली पहुंचे, यहां पहुंचने तक देर हो चुकी थी, और राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दिमागी फ्लूड यानि सीएनएफ की जांच में आशिया को दिमागी टीबी की पहचान हुई, जिसकी वजह से उसे लकवा हो गया है। जाकिर अब हर पन्द्रह दिन में बहन की दवा लेने दिल्ली आते हैं। जाकिर ने बताया कि शुरूआत में चिकित्सकों ने बताया नहीं कौन सी जांच करानी है, गांव में अब भी लोग केवल बलगम वाली खांसी को ही टीबी मानते हैं, जबकि दिल्ली आकर पता चला कि टीबी कहीं की भी हो सकती है।