नई दिल्ली: दिल्ली की ट्रैफिक या किसी भी बड़े शहर की ट्रैफिक आपके सुनने की क्षमता को कम कर सकता है। बिजी ट्रैफिक से निकलने वाली तेज आवाजें की वजह से दिल्ली में रहने वाले लोगों पर हियरिंग लास यानि सुनने की क्षमता पर असर हो रहा है। खासकर उन लोगों में यह परेशानी ज्यादा देखी जा रही है तो काफी वयस्त रोड के आसपास रहते हैं। इनमें 10 से 20 पर्सेंट सुनने की क्षमता कम हुई है। रात में तेज रफ्तार से गुजरने वाले वाहन और हॉर्न की आवाजें लोगों को बहरेपन का शिकार बना रहा है। दस साल पहले जहां लोग 60 साल के बाद हियरिंग लॉस के शिकार होते थे वो आज 45 साल के बाद ही हियरिंग लॉस का शिकार होने लगे हैं। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में जिस प्रकार हेड फोन का चलन बढ़ा है, वह भी उन्हें हियरिंग लॉस का शिकार बना सकता है।
: बिजी ट्रैफिक है खतरनाक
एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर आई. एम. पराशर का कहना है कि उनके पास आने वाले मरीजों में से ज्यादातर लोग शहरों के होते हैं। कम सुनने की बीमारी शहरों में ही ज्यादा होती है। इलाज के लिए आने वाले ऐसे मरीजों में 10 पर्सेंट 20 पर्सेंट मरीज बिजी चौराहों पर रहने वाले होते हैं। चाहे वह आश्रम का इलाका हो, नेहरू प्लेस का इलाका हो या फिर कोई अन्य बिजी चौराहा हो। यही नहीं रेलवे लाइन, फैक्ट्री के आसपास रहने वाले लोगों की भी यही परेशानी है। यहां पर दिन-रात गाड़ियों का शोर और तेज हॉर्न की आवाजें लोगों को मजबूरी में सुननी पड़ती हैं। लगातार तेज आवाज के कारण सुनने की क्षमता कम होना तय है।
: हो सकती हैं कई बीमारी
ऑस्ट्रेलिया के एक स्टडी के अनुसार प्रेग्नेंसी में प्रीमेच्योर डिलवरी का एक कारण यह भी है। स्टडी में शामिल महिलाएं चौराहे और इसके आसपास रहती थीं। भले ही भारत में ऐसी कोई स्टडी नहीं हुई है लेकिन डॉक्टर कुशवाहा भी कहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रैफिक के आसपास साउंड पॉल्यूशन सबसे ज्यादा होता है। डॉक्टर पराशर कहते हैं कि इस वजह से इरिटेशन होने लगती है, अचानक तेज आवाज की वजह से हार्ट के मरीजों का हार्ट फेल हो सकता है, ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है, मानसिक संतुलन खराब हो सकता है, प्रीमेच्योर डिलीवरी हो सकती है और बहरेपन की भी बीमारी हो सकती है।
: बंद कमरे भी सेफ नहीं
डॉक्टर पराशर का कहना है दिल्ली में लगातार गाड़ियों की संख्या बढ़ती जा रही है और उसी लेवल पर एयर और साउंड पॉल्यूशन बढ़ता जा रहा है। अगर आज लोग अपने घर में हैं तो वहां भी साउंड का लेवल 30 से 35 डेसीबल तक का रहता है। अगर सभी दरवाजे और खिड़की बंद करके रहें, तब यह 15 डेसिबल होता है। यानि कि अगर आफ सेफ रहना चाहते हैं तो हमेशा बंद कमरे में रहें, क्योंकि बंद कमरे से बाहर खतरा है।
: समय से पहले बढ़ रहा है बहरापन
रॉकलैंड अस्पताल के ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर धीरेंद्र कुशवाहा के अनुसार आमतौर पर 15 से 20 डेसिबल साउंड सेफ है। लेकिन अगर कोई आवाज अचानक आती है तो इससे क्षणिक बहरापन आता है। यह बहरापन बाद में फिर वापस आ जाता है। लेकिन जब लगातार 85 डेसिबल साउंड हो तो इससे पर्मानेंट हियरिंग लॉस होने का खतरा रहता है। यह बीमारी पहले 60 साल की उम्र के बाद होती थी, अब 45 साल की उम्र के ही इस तरह के मरीज देखे जा रहे हैं।
: नजरअंदाज कर देते हैं इसे लोग
डॉक्टर पराशर का कहना है कि अन्य तरह के पॉल्यूशन पर आम लोगों के साथ-साथ सरकार का भी फोकस है, लेकिन साउंड पॉल्यूशन को नजरअंदाज कर दिया जाता है। जब तक सुनने की क्षमता पूरी तरह से कम नहीं हो जाती है, तब तक लोग इलाज के लिए भी नहीं आते हैं।
:रीक्रिएशन साउंड बच्चों के लिए खतरनाक
डॉक्टरों का कहना है कि आजकल साउंड को रिक्रिएट करके तेज किया जाता है और इसके लिए हेड फोन यूज होता है। आमतौर पर हेड फोन से साउंड 80 से 135 डेसिबल तक होता है। अगर इतनी तेज आवाज में म्यूजिक सुनेंगे तो कान को नुकसान होना तय है। डॉक्टर पराशर का कहना है कि अभी उनके पास ऐसे बच्चे आ रहे हैं, लेकिन उसकी संख्या कम है क्योंकि साउंड का कान पर असर थोड़ा लेट से होता है।
: तेज आवाज का असर
इस वजह से इरिटेशन होने लगती है
अचानक तेज आवाज की वजह से हार्ट के मरीजों का हार्ट फेल हो सकता है
ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है
मानसिक संतुलन खराब हो सकता है
प्रीमेच्योर डिलीवरी हो सकती है
बहरेपन की भी बीमारी हो सकती है
: सुनने की क्षमता
0.1 से 135 डेसीबल तक सुन सकते हैं
15 से 20 डेसीबल तक कान को कोई नुकसान नहीं होता है
60 से 65 डेसीबल के बाद कान को आवाज चुभने लगती है
115 डेसीबल के साउंड से कान का पर्दा फट सकता है
85 से 120 डेसीबल साउंड पटाखे की होती है
85 से 115 डेसीबल साउंड होता है हेडफोन का
45 साल की उम्र के बाद हियरिंग लॉस की समस्या होने लगती है
वाहन निकलने वाले तेज आवाज की क्षमता
जेट प्लेन 120 डेसिबल
ट्रेन 110 डेसिबल
कार 90 डेसिबल
बाइक 90 डेसिबल
डॉग 70 डेसिबल