आखिरी बार परिवार से पांच महीने पहले मिली थीं, यह कोरोना योद्धा

नयी दिल्ली,
कोविड-19 मरीजों का इलाज करना, धैर्य बनाए रखने के लिये उन्हें मानसिक रूप से तैयार करने में मदद करना और संक्रमण की चपेट में खुद भी आने के डर से निपटने जैसी कई चुनौतियां हैं, जिनका देश के स्वास्थ्यकर्मी प्रतिदिन सामना कर रहे हैं। देश भर में कोविड-19 देखभाल केन्द्र में काम कर रही कुछ महिला स्वास्थ्यकर्मियों ने अग्रिम मोर्चे पर इस महामारी से लड़ने के अपने अनुभवों को डॉक्टर्स दिवस के अवसर पर साझा किया।
अमेरिका स्थित जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी से जन स्वास्थ्य कार्यक्रम में मास्टर डिग्री प्राप्त करने वाली निमरत कौर इन दिनों पटना के एक कोविड केंद्र में काम कर रही हैं। कौर (32) ने फोन पर कहा, ‘‘यह महामारी किसी एक वर्ग या लोगों के किसी एक समूह से संबद्ध नहीं है, यह हर किसी से संबद्ध है। चिकित्सकों के बीच भी निरंतर भय का माहौल बना हुआ है क्योंकि हम कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के बीच हैं और दहशत में हैं। हम उन्हें यह भरोसा दिलाते हैं कि कोरोना पॉजिटिव होने का मतलब यह नहीं है कि अब उनकी दुनिया ही खत्म हो गई। कौर 12 घंटे की अपनी ड्यूटी पाली में प्रतिदिन कोविड-19 के करीब 25 मरीजों का इलाज करती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मेरी दिनचर्या बहुत ही बेतरतीब हो गई है, जिसे मैं हर कुछ दिनों के बाद दुरूस्त करने की कोशिश करती हूं। कौर ने कहा, ‘‘ मैं आखिरी बार अपने परिवार से पांच महीने पहले मिली थी और अपनी पाली का समय प्रतिकूल होने के चलते मैं उनसे बात तक नहीं कर पाती।’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यदि आप उनसे बात करते हैं तो आप वास्तव में उन्हें डरा रहे होते हैं क्योंकि यदि बातचीत के दौरान मुझे खांसी भी आ जाए तो वे सचमुच में डर जाएंगे…उनका पहला सवाल यही होता है कि क्या तुम ठीक हो?’’ एक कोविड केन्द्र में काम कर रही मनोचिकित्सक पूजा अय्यर ने भी कौर से सहमत होते हुए कहा कि उनके लिये सबसे बड़ी चुनौती कोविड-19 मरीजों को समझाने की होती है क्योंकि वह पूरी तरह से ढंकी होती हैं। उन्होंने कहा, ‘‘परामर्श देने के दौरान सबसे अहम चीज है आंखों से संचार होना और पीपीई के चलते यह नहीं हो पाता है। हम भाव भंगिमाएं, सिर हिला कर सहमति प्रकट करना और जोर से बोलने का उपयोग करते हैं ताकि मरीज हमें सुन सकें। ’’ अय्यर (31) ने कहा, ‘‘जब मरीज बहुत ज्यादा निराश हो जाते हैं तब भी हम उन्हें स्पर्श नहीं कर सकते। हम अपनी दोनों बांह सामने मोड़ कर उन्हें यह दिखाते हैं हमें उनकी चिंता है।’’ उन्होंने इस रोग से जुड़े सामाजिक कलंक से लड़ने की जरूरत पर भी जोर दिया। वहीं, 26 वर्षीय नर्स अनीमा एक्का ने कहा कि कोविड केन्द्र में तैनात होने का फैसला करने से पहले उन्होंने कई दिनों तक अपने परिवार के साथ इस पर विचार किया क्योंकि वह दूसरों की सेवा करना चाहती है। डॉक्टर्स विदाऊट बॉर्डर्स की प्रोजेक्ट मेडिकल रेफरेंट एवं चिकित्सक निशा मेनन ने कहा कि कई घंटे तक पीपीई पहने रखना और काम की थकान से कई स्वास्थ्यकर्मियों को शरीर में दर्द और सिर दर्द की शिकायत होती है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्यकर्मियों के लिये एक अन्य चुनौती खुद को सुरक्षित रखना है।

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