नई दिल्ली: बिना वजह एंटीबायटिक्स दवा के यूज को कंट्रोल करने के लिए निगरानी करनी होगी, क्योंकि दुनिया भर में इसकी वजह से एंटीमाईक्रोबायल रेसिस्टेंस तेज़ी से बढ़ रही है। बैक्टीरीया के अंदर एक ख़ास किस्म का सुरक्षा तंत्र होता है जो धीरे-धीरे इस असर को कम कर देता है और रेसिस्टेंस पैदा कर देता है। एंटीबायटिक्स का अत्यधिक प्रयोग की वजह से इसे रोकने की क्षमता की तुलना में इस प्रतिरोधक ढांचे को तेज़ कर सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि एंटीबायटिक रेसिस्टेंस के बारे में जागरूकता फैलाई जाए और डाॅक्टरों और मरीज़ों में उसके उचित प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए।
इस बारे में जानकारी देते हुए आईएमए के नैशनल प्रेसिडेंट डॉ के के अग्रवाल ने बताया कि जब एंटीबायटिक के प्रयोग की बात हो तो यह समझना ज़रूरी होता है कि डाॅक्टर या मरीज़ में से कौन ज़िम्मेदार है। डाॅक्टर की ओर से ज़रूरत से ज़्यादा दवा देना रोकना होगा। कई बार यह दवाएं इलाज की बजाए बचाव के लिए दी जाती हैं। सावधानी के तौर पर कई बार डाॅक्टर इन दवाओं का प्रयोग सुरक्षा के मद्देनज़र तब भी कर लेते हैं जब इनकी आवश्यकता नहीं होती। मरीज़ की तरफ से अपनी मर्ज़ी से दवा लेना भी चिंता का विषय है। कई अहम एंटीबायटिक्स दुकानों पर उपलब्ध हैं और अक्सर बिना डाॅक्टर की सलाह उचित ख़ुराक और अवधि की जानकारी के ले ली जाती हैं। इस लिए डाॅक्टरों और मरीज़ों दोनों की हो इन कीमती दवाओं के उचित प्रयोग के लिए जागरूक होना होगा।
कुछ महत्वपूर्ण बातें-
· बैक्टीरियल संक्रमण ना हो तो एंटीबायटिक्स लिखने से परहेज़ करें
· गलत मात्रा और अनावश्यक लंबे इलाज से शरीर में रेसिस्टेंस बनने का ज़्यादा मौका मिलता है
· एंटीबायटिक्स के उचित प्रयोग के बारे में नेशनल ट्रीटमेंट गाईडलाइन्स का अनुसरण करें
· साधारण खांसी ज़ुकाम और हल्के दस्त में एंटीबायटिक की आवश्यकता नहीं होती
· जहां पर कम प्रभावशाली एंटीबायटिक कारगर साबित हो सकती है, वहां ज़्यादा प्रभावशाली दवा ना लिखें
· जैसे ही रोग के लक्षण कम हो जाएं मरीज़ को एंटीबायटिक का प्रयोग तुरंत बंद नहीं कर देना चाहिए। संक्रमण की रोकथाम और हाथों की स्वच्छता और हाथ ना मिलाने की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए।