जीका मस्तिष्क के विकास पर करता है हमला

जीका वायरस गर्भ में पल रहे शिशु के मस्तिष्क विकास के लिए कारक विटामिन पर हमला करता है। जिसकी वजह से शिशु के दिमाग का विकास रूक जाता है। वायरस के दिमाग पर हमला करने के तरीके को जानने के लिए भारत में शोध किया गया है। अंर्तराष्ट्रीय जर्नल ‘फ्रंटियर इन न्यूरोसाइंस’ में छपे शोधपत्र अनुसार जीका मस्तिष्क के विकास के लिए कारक रेटिनोइक एसिड पर हमला करता है, जिसके कारण गर्भस्थ शिशु के दिमाग का सामान्य विकास नहीं हो पाता है। मालूम हो कि संक्रमण से बचने के लिए कुछ देशों ने फिलहाल गर्भधारण को टालने की बात कही है।
शोधपत्र के अनुसार जीका वायरस (जेडआईके वी) एक तरह का गंभीर रोगजनित वायरस है जो माइक्रोसेफेलिस या मस्तिष्क में सूजन के साथ ही कई अन्य तरह की जन्मजात विकृतियों के लिए जिम्मेदार है। डॉ. भीमराव अंबेडकर सेंटर फॉर बायोमेडिकल रिसर्च और एम्स के एनाटॉमी विभाग द्वारा किए अध्ययन में इस बात का पता लगाया गया है। शोधकर्ता डॉ. आशुतोष कुमार ने बताया कि गर्भधारण के दूसरे और तीसरे महीने में ही नवजात में जीनोम सिक्वेंस या अनुक्रम बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, इस प्रक्रिया से ही नवजात के डीएनए का भी विकास होता है। वायरस गर्भ में मौजूद शिशु की न्यूरल ट्यूब को संक्रमित कर नवजात शिशु के मस्तिष्क में सूजन सहित कई तरह के मस्तिष्क संबंधी जन्मजात विकार पैदा कर देता है। जीका वायरस के असर की वजह जानने के बाद अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर वायरस के प्रति प्रतिरक्षा तैयार करने के लिए वैक्सीन को बनाना आसान हो जाएगा।

कैसे होता है वायरस का हमला
संक्रमित मादा एडीस द्वारा गर्भवती महिला के खून के जरिए वायरस गर्भस्थ शिशु की न्यूरल ट्यूब को संक्रमित करता है। गर्भ में मौजूद रेटिनोइस एसिड न्यूरनल ट्यूब में मौजूद एक तरह का मैटाबोलाइट विटामिन ए है, जो मस्तिष्क के शुरूआती विकास के लिए जिम्मेदार है। वायरस के हमले का असर जानने के लिए अन्य जीन के (अनुक्रम) सिक्वेंस को देखा भी गया, जिसका असर जीका की अपेक्षा कृत सकारात्मक था। जबकि जीका का हमल्विटामिन के असर को कम करके मष्तिस्क में सूजन या फिर दिमाग को छोटा (माइक्रोसेफेलिस)कर देता है। संक्रमण के साथ पैदा हुए बच्चों के मस्तिष्क का कभी सामान्य विकास नहीं हो पाता, इसलिए संक्रमण रोकने पर जोर दिया जाता है।

वायरस का हमला
अक्टूबर 2015 से जनवरी 2016 तक अकेले ब्राजील में जीका का गुलिनयन बर्र सिंड्रोम के 4000 से अधिक मरीज देखे जा चुके हैं। जीका की कारक मादा एडीस ए और एल्बोपिकटस के जरिए मानव शरीर में प्रवेश करता है। संक्रमण के शरीर में प्रवेश करने के 24 घंटे के अंतराल में वायरस का असर आंखों पर दिखने लगता है, जिसमें आंखे लाल हो जाती है और पानी गिरने लगता है। बुखार के लक्षण डेंगू और चिकनगुनिया की तरह ही होते हैं, केवल वायरस का स्टेन अलग होता है।

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