निमोनिया को जानें, समझें और अपने नौनिहालों को बचाएं

अभिषेक आनंद, नई दिल्ली

निमोनिया एक ऐसी बीमारी है जो आपके बच्चे की जान ले सकता है, लेकिन अगर इस बीमारी को समय पर पहचान लिया जाए, इसके लक्षण समझ लिया जाए तो आप अपने नौनिहालों को इस बीमारी से बचा सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार भारत में हर घंटे निमोनिया से 40 से 45 बच्चों की मौत होती है। इसलिए निमोनिया को मामूली बीमारी समझने की गलती नहीं करें।

नवजात शिशु अपनी समस्या बोलकर बता नहीं सकते। ठंड के मौसम में यदि बच्चे के शरीर का तापमान कम होने लगे तो जान जोखिम में पड़ जाती है। जरूरी यह है कि बच्चे के शरीर को बराबर गर्म रखें। यदि गलती से उसे ठंड लग जाए तो तुरंत इलाज कराएं। जो बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं, उन्हें निमोनिया का बैक्टीरिया जल्दी बीमार कर देता है। हालांकि देश में निमोनिया की वैक्सीन उपलब्ध है, फिर भी वैक्सिनेशन बहुत कम हो रहा है।

निमोनिया एक प्रकार का संक्रमण है, हवा में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस सांस के के साथ फेफड़े तक पहुंच जाता है। निमोनिया के दो प्रमुख लक्षण हैं, एक खांसी और दूसरा सांस चलना। ऐसे बच्चों को बुखार भी अक्सर होता है। निमोनिया यदि तीन महीने से छोटे बच्चों में हो तो ज्यादा खतरनाक होता है। ऐसे बच्चों को अस्पताल में भर्ती कर एंटीबायोटिक्स दवाइयों द्वारा इलाज किया जाता है निमोनिया की वजह से अगर कोई बच्चा दूध नहीं पी पा रहा हो, बहुत सुस्त हो, उसका तापमान कम हो रहा हो या फिट्स के दौरे भी आ रहे हों तो यह अत्यंत गंभीर बात है। तीन महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों की स्थिति भले ही उतनी गंभीर न लगे, लेकिन उस पर नजर रखना जरूरी है। जन्म के समय जिन बच्चों का वजन कम होता है उन बच्चों की निमोनिया से मृत्यु होने का खतरा अधिक होता है।

डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि ज्यादातर मामलों में निमोनिया बैक्टीरिया या वायरस के संक्रमण की वजह से होता है। कुछ बच्चों में जन्मजात विकार, सांस की नली में रुकावट या दिल में जन्मजात विकार होने से निमोनिया होता है। इस रोग के ज्यादातर मामले सर्दियों की शुरुआत में या इसके दौरान सामने आते हैं। अधिकांश रोगियों में इसका इलाज खून की जांच और छाती का एक्सरे करके किया जाता है।

बैक्टीरियल निमोनिया में एंटीबायोटिक्स दवाइयां दी जाती हैं। इसके अलावा यदि बुखार हो तो पेरासिटेमॉल दी जाती है। बहुत तेज सांस हो तो भर्ती करने के बाद ऑक्सीजन दी जाती है। ग्रामीण इलाकों में अधिकांश बच्चों की निमोनिया होने पर मौत हो जाती है, क्योंकि उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल पाता है और बच्चे माता पिता बच्चे की बीमारी नहीं समझ पाते हैं।

कैसे बचाएं:
: एक साल से छोटे बच्चे को ऊनी कपड़े, मोजे, कैप आदि पहनाकर रखें। रात में ज्यादा ठंड होने पर कमरे को गर्म रखने का उपाय करें
: सर्दी-खांसी होने पर अगर बच्चा दूध नहीं पी रहा हो या तेज बुखार हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
: जन्म के बाद 6 महीने तक सिर्फ मां के दूध पर पलने वाले बच्चे को निमोनिया कम होता है।
: निमोनिया से बचने के लिए कुछ टीके भी उपलब्ध हैं, जो लगवाना चाहिए। इनमें बीसीजी, एचआईवी, डीपीटी व न्यूमोकॉक्कल के टीके प्रमुख हैं।
: गर्भवती महिला की अच्छी देखभाल करने से जन्म लेने वाले बच्चे का वजन अच्छा रहता है। जन्म के समय बच्चे का वजन ढाई किलो से अधिक होना चाहिए। ऐसे बच्चों को निमोनिया होने का जोखिम बहुत ही कम रहता है।

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