नई दिल्ली, पुरेन्द्र कुमार
मास्क से ढका चेहरा न सिर्फ कोरोना से आपकी सुरक्षा करता है बल्कि इससे दूसरों की भी रक्षा होती है। आईआईटी बाम्बे द्वारा किए गए ताजा अध्ययन में पाया गया गया है कि चेहरे पर मास्क की वजह से खांसने, छींकते या बात करते समय हवा में घुलने वाले कफ क्लाउड्स को रोका जा सकता है। यह कफ क्लाउड्स या ड्राप लेट्स हवा में पांच से आठ सेंकेंड तक अधिक सक्रिय रहते हैं।
आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर अमित अग्रवाल और रजनीश भारद्वाज ने बताया कि मरीज के मुंह से कफ क्लाउड के जरिए निकला एसएआरएस सीओवीटू की आकार और संख्या को कम करने के लिए केवल मास्क ही नहीं, बल्कि रुमाल भी काफी सहायक होता है। दोनों की रिसर्च अमेरिकन इंस्टिट्यूट ऑफ फीजिक्स के फीजिक्स ऑफ फ्लूड्स जॉर्नल में प्रकाशित हुई है। रिसर्च में उन्होंने पाया कि मास्क लगाने से क्लाउड वॉल्यूम सात गुना तक घट जाता है। वहीं एन-95 मास्क लगाने से संक्रमण का खतरा 23 गुना तक कम हो जाता है। डॉक्टर अग्रवाल ने बताया, ‘जेट थिअरी के आधार पर विश्लेषण करते हुए हमने पाया कि कफ के बाद के पहले 5 से 8 सेकेंड हवा में ड्रॉपलेट फैलने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।’
वहीं डॉक्टर भारद्वाज ने कहा, यहां तक कि खांसते वक्त रुमाल का यूज करना या फिर कोहनी में ही खांसने से कफ क्लाउड की दूरी घट जाती है।’ दूसरे शब्दों में कहें तो इस तरह के उपायों से संक्रमण के फैलने की संभावना सीमिति हो जाती है। आईआईटी-बॉम्बे की टीम ने कफ क्लाउड की मात्रा को मापने के लिए फॉम्र्युला भी ईजाद किया है। इस फॉम्र्युले की मदद से किसी हॉस्पिटल के वॉर्ड में अधिकतम लोगों की संख्या निर्धारित करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही किसी कमरे में, सिनेमा हॉल में कार या एयरक्राफ्ट के केबिन में हवा सर्कुलेट करने की न्यूनतम दर बनाए रखने में भी सहायता मिलती है, जिससे ताजगी बनी रहे और संक्रमण की स्थिति कम हो सके।