नई दिल्ली,
ध्वनि प्रदूषण का शिकार हुए जिन लोगों की सुनने की क्षमता कम हो गई है या फिर वह बहरेपन का शिकार हैं तो नियमित रूप से भ्रामरी प्राणायाम का प्रयोग इस मर्ज को ठीक कर सकता है। इंडियन जर्नल ऑफ ऑटोलॉजी में प्रकाशित शोध में ध्वनि प्रदूषण के बीच काम करने वाले कुछ लोगों को निर्धारित समय तक भ्रामरी प्राणायाम और ओम का उच्चारण कराया गया, जिसके बेहतर परिणाम देखे गए।
केन्द्रीय योग एवं नैचुरोपैथी काउंसिल के सदस्य और भ्रामरी प्राणायाम पर शोध करने वाले ईएटी विशेषज्ञ डॉ. महेन्द्र कुमार तनेजा ने बताया कि भ्रामरी और ओम शब्द के उच्चारण में श्वांस नली में नाइट्रिक ऑक्साइड गैस उत्पन्न होती है, जो श्वसनतंत्र संबधी परेशानियों को दूर करता है। भ्रामरी प्राणायाम से बहरेपन को दूर करने का शोधपत्र भी प्रकाशित किया जा चुका है। नाइट्रिक ऑक्साइड को नाक के छिद्रों की सूजन को दूर करने में भी सहायक माना गया है। साधारण सांस लेने की अपेक्षा भ्रामरी प्राणायाम के बाद फेफड़ों तक 15 प्रतिशत तक अतिरिक्त शुद्ध हवा पहुंचती है। इसकी मदद से पैट्रोल पंप, प्रीटिंग प्रेस और कैमिकल इंडट्री में काम करने वाले लोगों को ब्रायकाइटिस के साथ ही शोर के कारण कानों को होने वाले नुकसान को भी रोका जा सकता है। उम्र बढ़ने के साथ श्वांस के जरिए नाइट्रिक ऑक्साइड का बनना कम हो जाता है, जिससे रक्तसंचार, दिल दिमाग और यहां तक कि प्रजनन संबंधी अंगों पर असर पड़ता है। भ्रामरी की मदद से अधिक उम्र के बाद भी खून में नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को बेहतर रखा जा सकता है।