नई दिल्ली: कई महिलाओं की मां बनने की ख्वाहिश जब पूरी नहीं हो पाती, तो वो डिप्रेशन तक में चली जाती हैं। लेकिन इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) ने ऐसी महिलाओं की दुनिया बदल दी है। पिछले 8-10 सालों में आईवीएफ के जरिए महिलाओं की गोद भरी जा रही है।
आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर श्वेता गुप्ता का कहना है कि आईवीएफ एक प्रोसेस है, जिसमें महिला की ओवरी से अंडों को निकाला जाता है और पुरुष के शुक्राणु लेकर उसे शरीर से बाहर ही फर्टिलाइट किया जाता है। यह फर्टिलाइट एम्ब्रियो (भ्रूण) गर्भाशय में डाला जाते है, ताकि एम्ब्रियो नेचुरल तौर पर डिवेलप हो सके। इस तकनीक में कम से कम तीन-चार भ्रूण गर्भाशय में डाले जाते हैं। यही वजह है कि आईवीएफ में अक्सर जुड़वां या दो से अधिक बच्चे होने की संभावना रहती है।
डॉक्टर शीतल अग्रवाल का कहना है कि आईवीएफ में सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि हर कपल्स की समस्या अलग-अलग होती है। आजकल बढ़ती उम्र में शादी, उसके बाद दफ्तर के स्ट्रेस की वजह से एक-दूसरे को समय नहीं दे पाना, देर से शादी के बाद कंसीव करने में और देरी करना कुछ ऐसे कारण हैं, जो महिला और पुरुष दोनों की ही फर्टिलिटी पर असर डालते हैं।
डॉक्टर शीतल कहती हैं कि भले ही यह प्रक्रिया सुनने में आसान लगती हो लेकिन ऐसा है नहीं। एक लंबी और खर्चीली प्रक्रिया है। पीरियड के दूसरे दिन आईवीएफ एक्सपर्ट एंडियोमेट्रियम (गर्भाशय की दीवार) की मोटाई और अंडों की संख्या को देखा जाता है। इसे फॉलीक्यूलर मॉनिटरिंग कहा जाता है। यह देखने के लिए टीवीएस (ट्रांस वैजाइनल सेक्शन) किया जाता है। यह एक प्रकार का अल्ट्रासाउंड ही है, लेकिन यह बाहर से नहीं, बल्कि प्राइवेट पार्ट के अंदर एक डिवाइस डाल कर किया जाता है। इसके बाद डॉक्टर महिला की जरूरत के मुताबिक हारमोन के इंजेक्शन देते हैं। हारमोन का टाइप, अमाउंट और इसे कितने दिन लेना है यह जरूरत के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है। इसके बाद इंजेक्शन का कोर्स दिया जाता है और इसके पूरे होने के बाद ही अंडे को बाहर निकालते हैं।