साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ पेडियाट्रिक डेंटिस्ट्री (एसएएपीडी) का पहला द्विवार्षिक सम्मेलन आज राजधानी में शुरू हो गया। मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज के पेडोडोंटिक्स एंड प्रीवेंटिव डेंटिस्ट्री विभाग ने इस अवसर पर ’’दिल्ली में बचपन के प्रारंभिक वर्षों में दांत की समस्याओं पर एक व्यापक सर्वेक्षण’’ का निष्कर्ष जारी किया। इस सम्मेलन के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी और मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज के पेडोडोंटिक्स एंड प्रीवेंटिव डेंटिस्ट्री विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘बचपन की दांत की समस्याओं पर इस तरह का व्यापक सर्वेक्षण हमने पहली बार किया है। इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष से हमें माता-पिता और बच्चों के बीच दंत स्वास्थ्य पर जागरूकता के मौजूदा स्तर का खाका तैयार करने और जागरुकता को बढ़ाने में मदद मिलेगी।’’ इस बाल दंत सम्मेलन में 11 देशों के 500 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
इस सर्वेक्षण के तहत पिछले दो महीनों में विभाग में आये 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के माता-पिता का प्रश्नावली के माध्यम से साक्षात्कार लिया गया था। डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘हमने 14 वर्ष से कम उम्र के 1000 बच्चों के माता-पिता से मुलाकात की।
इस सर्वेक्षण के मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं :
— 60 प्रतिशत से अधिक माता-पिता ने बताया कि उनके बच्चे दिन में सिर्फ एक बार ब्रश करते हैं जबकि दंत चिकित्सक ने उन्हें दो बार ब्रश करने की सलाह दी थी। दिन में एक बार ब्रश करने से दंत क्षय हो सकता है और हमेशा बच्चों को दिन में दो बार ठीक से ब्रश करने की सलाह दी जाती है।
— 85 प्रतिशत माता-पिता इस बात से अनजान थे कि बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार के टूथपेस्ट उपलब्ध हैं और वे अपने बच्चों को वही पेस्ट देते थे जिसका इस्तेमाल वे खुद करते थे। लेकिन बच्चों के लिए बहुत नरम ब्रिसल वाले ब्रश का इस्तेमाल करना चाहिए। डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार कहते हैं, ‘‘बच्चों के टूथपेस्ट में फ्लोराइड होना चाहिए क्योंकि यह दंत क्षय होने से रोकता है जो आजकल बच्चों में बहुत आम है। बच्चों के टूथपेस्ट में लुब्रिकेंट और फ्लोराइड होता है जो मुंह की समस्याओं को रोकने में मदद करता है।
— हालांकि दांत की बीमारियों को आसानी से रोका जा सकता है, लेकिन सर्वेक्षण में पाया गया कि ज्यादातर माता-पिता हर 6 महीने में दंत चिकित्सक के पास नहीं जाते थे। जबकि सभी दंत चिकित्सक हर 6 महीने में दांत की जांच कराने की सलाह देते हैं।
— लगभग 82 प्रतिशत माता- पिता ने बताया कि वे केवल दंत समस्या होने पर ही दंत चिकित्सा जांच के लिए दंत चिकित्सक के पास गए थे। डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘इस प्रवृत्ति के कारण उनके बच्चे में मुंह की बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। हम दांत की समस्याओं को रोकने के लिए माता-पिता को हर छह महीने में अपने बच्चे को दंत चिकित्सक से दिखाने की सलाह देते हैं क्योंकि दांत की समस्या के बारे में जानकारी नहीं होने पर यह सामान्य स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है।
— सर्वेक्षण में हमने माता-पिता से उनके बच्चों की खराब आदतों के बारे में पूछा और आंकड़े एकत्र किए गए। इससे पता चला कि 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे अंगूठा चूसने की आदत के कारण मालओक्लुजन (दो दांतों के बीच गलत अलाइनमेंट या दांतों की गलत स्थिति जिसमें जबड़े के बंद होने पर दांत एक दूसरे से रगड़ खाते हैं) से पीड़ित थे।
— 38 प्रतिशत बच्चों में नाक की बजाय मुंह से सांस लेने की आदत थी जिसके कारण उनमें मसूढ़े के रोग और दांत के मालओक्लुजन होने का खतरा था।
— सर्वेक्षण में पाया गया कि 90 प्रतिशत माता-पिता को बाल दंत चिकित्सा की विशेषता के बारे में जानकारी नहीं थी।
डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने कहा, ‘‘हमने बच्चों में कुछ खराब आदतों को भी पाया जो उन्होंने बाद में अपनाया था और यदि इन आदतों का समय पर समाधान नहीं किया गया तो बच्चों में दांत और मसूढ़े की बीमारियां हो सकती है। बच्चों की सभी प्रकार की दांत की बीमारियों को रोकने के लिए, दक्षिण एशियाई देश के बाल दंत चिकित्सकों ने हाथ मिलाया है और दक्षिण एशियाई देशों ने दांत और मसूढ़े की बीमारियों को खत्म करने के लिए शपथ ली है।’’
बचपन में दांतों में कैविटी के कुछ सबसे आम कारण आहार और मुंह की देखभाल है। दुर्भाग्यवश, फास्ट फूड आहार के इजाद के बाद बच्चे बार- बार फास्ट फूड और स्नैक्स खाते हैं, जिनमें कार्बोहाइड्रेट और शर्करा काफी मात्रा में होते हैं जो दांतों में कैविटी पैदा कर सकते हैं। हालांकि, दांतों की उचित देखभाल से दांतों को क्षय होने से लगभग 100 प्रतिशत रोका जा सकता है।