नई दिल्ली,
स्कूली बच्चों को दिए जाने वाले मिड डे मील को लेकर पहली बार कर्नाटक सरकार ने गंभीरता दिखाई है, यहां बच्चों के खाने की न्यूट्रिशिनल वैल्यू पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि मिड डे मील की थाली में यदि चावल की जगह बाजरा या बाजरे से बनी चीजें दी जाएं तो बच्चों में आयरन का स्तर 50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। राज्य सरकार के इस शोध को आधार मानते हुए नीति आयोग ने न सिर्फ मिड डे मील बल्कि पीडीएस यानि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दिए जाने वाले अनाज को भी संशोधित करने की बात कही है। नीति आयोग ने कहा कि है कि ऐसे नियम बनाएं जाएगें जिससे किसानों को पौषिक अनाज जैसे बाजरा, ज्वार आदि की पैदाइश करने में कठिनाई भी न हो और इसे आसानी से जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सके। सबसे अहम यह है कि सरकार पौषिकता के साथ ही किसानों को फसलों का न्यूनतम सर्मथन मूल्य देने के लिए भी कटिबद्ध है।
इस बावत बुधवार को दिल्ली में एक रिपोर्ट जारी की गई। कर्नाटक में 15000 बच्चों के खाने में ज्वार और बाजरा से बनी चीजों को शामिल किया गया, जिससे बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में तेजी देखी गई। अक्षयपात्रा मिड डे मील आपूर्ति करने वाली संस्था और टेस्टिंग इंडिया के सहयोग से यह अध्ययन किया गया। रिपोर्ट जारी करते हुए नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चन्द्र ने कहा कि यह अध्ययन केवल बच्चों को मिलने वाली पौषिकता तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें हम किसानों का हित भी देख रहे हैं। हम इस तरह की नीति तैयार करना चाह रहे जिससे शहरी लोगों के बीच बाजरे के प्रयोग को बढ़ाया जा सके, इसको कई तरह के विकल्प के तौर पर अपनाया जा सकता है। बाजरा किसानों के लिए भी अधिक मुनाफे वाली फसल साबित हो सकती है। पानी की उपलब्धता और बदलते मौसम को देखते हुए हम किसानों को अधिक मुनाफे की फसलों के लिए प्रेरित कर सकते हैं जिससे बच्चों का भी विकास हो सके, इसके लिए ज्वार व बाजरे की खेती के सभी पहलूओं पर अध्ययन किया जा रहा है। अक्षयपात्रा स्वयंसेवी संगठन ने अंर्तराष्ट्रीय क्राप रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ सेमी एरिड ट्रापिक्स के साथ मिलकर न्यूट्रिएंट इन इंडिया विषय पर अध्ययन किया, शोध पत्र साइंस पत्रिका न्यूट्रिएंड में प्रकाशित हुआ है। जिसमें कर्नाटक में बंगलूरू के पास के चार गांव के 15000 बच्चों के खाने में चावल की जगह बाजरा से बनी चीजों को शामिल किया गया। आहार विशेषज्ञ डॉ. एस अनीथा ने बताया केवल यह कहने से बात नहीं बनेगी कि हम मिड डे मील में बाजरा शामिल करने जा रहे हैं, उसको किस तरह बनाया गया, कैसे शामिल किया गया आदि विषयों पर भी चर्चा करनी होगी, जिससे बाजरे में मौजूद अधिक से आयरन का सही प्रयोग हो सके। तब ही बाजरे पर वैज्ञानिक अध्ययन किया गया। अध्ययन में इडली, उपमा, खिचड़ी और बिसीबेला में चावल की जगह कई प्रकार के हल्के और भारी बाजरे का प्रयोग किया गया, इन सभी बच्चों की साल से छह महीने की शारीरिक विकास की तुलना उन बच्चों के साथ की गई जो फोर्टिफाइड चावल और सांभर खा रहे थे। बाजरे पर की गई कर्नाटक सरकार की रिपोर्ट के बाद नीति आयोग ने पीडीएस प्रणाली के तहत वितरित किए जाने वाले खाद्यान्न का भी पुन: मूल्यांकन करने की बात कही है, जिससे लोगों को संतुलित आहार मिल सके।