नई दिल्ली,
खाने में फाइबर की कमी, कम पानी पीना और कुछ हद शौच की विदेशी सीट की वजह से लोगों में कब्ज या कांस्टिपेशन की समस्या बढ़ रही है। जो आगे चलकर कई बीमारियों की वजह बन सकती है। मल सामान्य न होने की इस परेशानी को शुरूआत में लोग नजरअंदाज करते हैं लेकिन पाचन क्रिया सामान्य रखने में सामान्य मल होने का बहुत बड़ा योगदान होता है। कब्ज से जूझते लोगों की परेशानी को समझते हुए सरगंगाराम अस्पताल में कब्ज संबंधी सभी परेशानियों का इलाज और जांच के लिए एक लैब तैयार की है, जिसे कांस्टिपेशन लैब भी कहा जा सकता है। एनोरक्टल, मैनोमेट्री आदि जांचों से कब्ज के इलाज की दिशा को तय किया जा सकता है।
सरगंगा राम अस्पताल के गैस्ट्रोइंटेलॉजी विभाग के डॉ. अनिल अरोड़ा ने बताया कि कब्ज को चार श्रेणी में बांटा जा सकता है। जिसमें स्लो मूवमेंट या रूकरूक कर मल पास होना, इनकार्डिनेशन या यूं कहें कि मल त्याग करते समय कितना दवाब लगाता है, इसके लिए एक निर्धारित दबाव होता है जिसका सामंजस्य बिगड़ने से मल त्यागने में दिक्कत होती है, तीसरा फाइबर राउंजर और चौथा इर्रेटेबल बॉउल सिंड्रोम की परेशानी अधिक देती है। बॉउल सिंड्रोम के दस से बीस प्रतिशत मरीज देखे जाते हैं, जिसे तनाव होने पर ही मल का अनुभव होने लगता है। खाने में फाइबर की कमी होने से मल सख्त हो जाता है और इसका त्याग करने में दिक्कत होती है। कार्डिनेंस की समस्या में मरीज को यह पता ही नहीं होता कि मल त्यागने के लिए कितना जोर लगना है। इस सभी समस्याओं का समाधान लैब जांच के बाद किया जा सकता है। डॉ. अनिल अरोड़ा ने बताया कि मेनोमेट्री जांच में मरीज के मलद्वार के मॉनिटर को जोड़ा जाता है और मल त्यागने के लिए दवाब बनाने की बात कही जाती है। मरीज के दवाब लगाते हुए स्क्रीन पर लाल, नीले, हरे और पीले रंग के रिडिंग आती है। सभी स्थिति नीले रंग की दवाब की स्थिति सबसे सही मानी जाती है। इस जांच के बाद मरीज को कार्डिनेशन बनाने के लिए और मोशन सामान्य होने के लिए दवाएं दे जाती है। 180 मरीजों पर किए गए शोध के अनुसार मेनोमेट्री जांच के बाद 60 प्रतिशत मरीजों में पाचन संबंधी गड़बड़ी, 25 प्रतिशत में स्लो मोशन और 15 प्रतिशत में अन्य समस्या देखी गई है।