लिवर को बीमार कर रहे हैं चार वायरस

नोट- विश्व हेपेटाइटिस दिवस पर विशेष
नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता
लिवर को सुरक्षित रखने के लिए पांच वायरस के खिलाफ सुरक्षा कवच जरूरी है। जिसमें स्वच्छ खान पान और दूषित पानी का इस्तेमाल न कर हेपेटाइटिस ए और ई से बचा जा सकता है। हेपेटाइटिस बी और सी लापरवाही की देन है। असुरक्षित रक्तदान और संक्रमित सूई हेपेटाइटिस सी का खतरा बढ़ाती है। जिससे बचाव के लिए फिलहाल वैक्सीन नहीं है।
एम्स के गैस्ट्रोइंटोलॉजिस्ट विभाग के प्रमुख डॉ. एसके आचार्य ने बताया कि देश में हर साल लिवर के 30 हजार नये मरीज देखे जा रहे हैं। जिसकी उम्र 23 से 30 साल के बीच है। दूषित पानी और खाने से हेपेटाइटिस ए और ई का खतरा बढ़ा है। हालांकि इसका सेहत पर सामान्य असर पड़ता है और आठ से दस दिन में वायरस का असर कम हो जाता है। इसमें पानी और खाने में उपस्थित वायरस लिवर की सामान्य सेल्स को संक्रमित कर देते हैं। वहीं हेपेटाइटिस बी और सी को ए और ई से अधिक गंभीर माना जाता है। जिसका असर लिवर पर क्रानिक बीमारी के रूप में सामने आता है। मेदांता मेडसिटी के डॉ. गुरदास चौधरी कहते हैं कि एचआईवी से कहीं अधिक गंभीर हेपेटाइटिस सी का संक्रमण होता है। जो तेजी से लिवर की सेल्स को क्षतिग्रस्त कर अन्य अंगों को प्रभावित करता है। बचाव के लिए देश में अभी तक हेपेटाइटिस बी का वैक्सीन उपलब्ध है, जिसमें हेपेटाइटिस सी से बचने के लिए सुरक्षित रक्तदान और विसंक्रमित सूई के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। हेपेटाइटिस डी का असर देश में अभी कम हैं, बी वायरस का संक्रमण होने पर ही हेपेटाइटिस डी का असर देखा जाता है।

एम्स शुरू करेगा पाचन बीमारी केन्द्र
पाचन क्रिया से जुड़ी गड़बड़ी की बढ़ती शिकायतों को देखते हुए एम्स देश का पहला डाइजेस्टिव डिसीस सेंटर शुरू करेगा। डॉ. एसके आचार्य ने बताया कि केन्द्र पर लिवर व उपापचय जुड़ी बीमारियों का इलाज किया जाएगा। तेजी से बढ़ती लिवर की समस्या को देखते हुए एम्स ने देश का पहला ऐसा केन्द्र खोलने की पहल की है। एम्स ट्रामा सेंटर के पास बनने वाले नये विभाग का काम दो साल में पूरा कर लिया जाएगा।

कितने तरीके से लिवर को खतरा
रक्तदान – हेपेटाइटिस सी संक्रमण के शिकार 32 प्रतिशत लोगों को असुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन से लिवर का संक्रमण प्राप्त होता है। दो प्रतिशत राष्ट्रीयकृत ब्लडबैंक में ट्रांसफ्यूजन से पहले एचसीवी की स्क्रीनिंग नहीं की जाती।
इंट्रा वॉस्कुलर ड्रग्स- सूई के जरिए ड्रग्स लेने के शिकार लोगों में आईवी के जरिए रक्त में हेपेटाइटिस सी का संक्रमण होता है। मणिपुर में वर्ष 2002 में हुए अध्ययन के अनुसार 92 प्रतिशत हेपेटाइटिस संक्रमित लोगों में 77 प्रतिशत आईवी ड्रग्स यूजर पाए गए।
डायलिसिस और लिवर प्रत्यारोपण- किडनी के शिकार लोगों को दी जाने वाले इलाज की प्रक्रिया भी अधिक सुरक्षित नहीं है। 26.2 प्रतिशत किडनी के मरीजों को सीरोपॉजिटिव पाया गया। जिनकी आरएनए और पीसीआर भी पॉजिटिव पाया गया। यह मरीज हेपेटाइटिस संक्रमण के नजदीक पाए गए हैं।
अन्य खतरे- ओटी, ब्लडबैंक और अस्पताल में काम करने वाले हेल्थकेयर वर्कर भी अस्पतालों में संक्रमण रोकने के बेहतर इंतजाम न होने के कारण संक्रमण के करीब हैं। राजस्थान का अध्ययन कहता है कि 5.4 प्रतिशत दंतरोग विशेषज्ञ हेपेटाइटिस सी के शिकार पाए गए।

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