सचिन को जिस इलाके के लिए साउथ अफ्रीका जाना पड़ा था, अब वह इलाज दिल्ली में भी

नई दिल्ली: कंधे की मांसपेशियों की जिस क्षति का इलाज कराने के लिए पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदूलकर और अनिल कुंबले जैसे कई जाने माने क्रिकेटर दक्षिण अफ्रीका गए थे, वह इलाज अब सफदरजंग स्पोटर्स इंजरी सेंटर में ही उपलब्ध होगा। देश में पहली बार एंडोबटन तकनीक की मदद से दो दिवसीय सेमिनार में 25 सजीव सर्जरी की जाएगी।

सफदरजंग स्पोटर्स इंजरी सेंटर के प्रमुख डॉ. दीपक चौधरी ने बताया कि कंधे की मांसपेशियों की में चोट लगने के बाद लैबरम टिश्यू सबसे अधिक प्रभावित होते है। इलाज की पारंपरिक विधि में क्षतिग्रस्त टिश्यू को कफ बोन या कंधे की हड्डी के साथ जोड़ दिया जाता है। लेकिन खेल में बाउलिंग, बैटिंग और ऐसी कई गतिविधि जिसमें कंधे का घुमाव अधिक होता है, बार-बार डिस्लोकेशन (कंधे की हड्डी अपनी जगह से हिलना) का खतरा बना रहता है। एक समय में बार हड्डी घिस जाती है और मरीज की परेशानी बढ़ जाती है। लेकिन पहली बार स्पोष्टर्स इंजरी सेंटर ने यूरोपीय आथोस्कोपिक सर्जन पॉस्कल बायले की मदद से एंडोबटन सर्जरी की है।

सेंटर के आर्थोस्कोपिक सर्जन डॉ. हिमांशु कटारिया ने बताया कि इसमें ऑप्टिक फाइबर के वायर से टेटियम के बटन के जरिए हड्डी के एक हिस्से को घिसी हुई हड्डी से जोड़ दिया जाता है। दूरबीन की मदद से की गई इस तकनीक से सर्जरी में होने वाली गलतियों को 90 फीसदी कम किया जा सकता है।

20 लाख का इलाज दो लाख में
डॉ. हिमांशु कटारिया ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका और अन्य यूरोपीय देशों में इस सर्जरी को कराने के लिए एक खिलाड़ी के इलाज पर 20 लाख रुपए का खर्च आता है, जबकि स्पोर्ट्स इंजरी सेंटर में इस सर्जरी को डेढ़ से दो लाख रुपए के खर्च पर किया जा सकता है। डॉ. पाश्कल की इस तकनीक के जरिए सेंटर के चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया जा सकेगा। शुक्रवार को तकनीक की मदद से पहली सर्जरी की गई। जबकि विश्वभर में इस तकनीक से अब दस हजार ऑपरेशन किए जा चुके हैं।

कब जरूरत एंडोबटन तकनीक की
अधिक घुमाव की गतिविधि में अकसर कंधा डिस्लोकेट या कंधे की हड्डी कफ से खिसक जाता है। पहली बार की ऐसी क्षति में मांसपेशी (लैबरम टिश्यू) को हड्डी के साथ सिल कर जोड़ दिया जाता है, दूसरी या तीसरी बार कंधा फिर डिस्लोकेट होने से कंधे को स्क्रू से जोड़ा जाता है। लेकिन एक समय बाद जब कंधे की हड्डी अधिक घिस जाती है तो कफ की हड्डी का हिस्सा काटकर उसे क्षतिग्रस्त कंधे के साथ टेटियम के तार के साथ जोड़ दिया जाता है, जिसे एंडोबटन कहा जाता है।

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