निदेशक इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीगरेटिव बायोलॉजी बता रहे हैं कि कोरोना वैक्सीन लेना क्यों जरूरी है। कोरोना संक्रमण के अधिक जोखिम वाले लोगों को वैक्सीन संक्रमण के जानलेवा प्रभावों को कम करता है। वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावकारी है।
कोरोना वैक्सीन के साइड इफैक्ट्स से लोग डरे हुए हैं क्या उन्हें डरना चाहिए?
वैक्सीन लेने के बाद शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में बदलाव होता है। कुछ लोगों में बुखार, दर्द और थकान जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। जब बड़ी आबादी का टीकाकरण किया जाता है तो यह असंभव है कि किसी को भी किसी भी तरह का साइड इफेक्ट्स न हों।
बहुत से लोगों में यह साइड इफेट्स मामूली होते हैं, लेकिन कुछ केस में यह अति गंभीर भी हो सकते हैं। लेकिन इस तरह के साइड इफैक्ट्स हमेशा से हर वैक्सीन के साथ होते हैं। उनके साथ भी जिन्हें हम वर्षो से प्रयोग कर रहे हैं। मूल बात यह है कि वैक्सीन लेने के बाद होने वाले साइड इफेट्स इनसे फायदों की तुलना में मामूली या बहुत कम होते हैं।
वैक्सीन परीक्षण के चरण में जब हम प्रतिभागियों को प्लेसबो और एक्टिव वैक्सीन दे रहे थे तब कुछ साइड इफेक्ट्स एवं मृत्यु हमने प्लेसबो गु्रप में भी देखी। जाहिर है वह वैक्सीन रिलेटेड नहीं थी।
जब भारत में कोरोना के मामले कम हो रहे हैं तो हमें वैक्सीन की क्या जरूरत है?
भारत में कोरोना संक्रमण के मामले कम होने के बावजूद व्यापक स्तर पर टीकाकरण यह सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि संक्रमण के खतरे वाली बड़ी आबादी को वैक्सीन के जरिए सुरक्षित किया जा सके। जोखिम के बीच काम करने वाले हेल्थकेयर वर्कर और फ्रंट लाइन वर्कर और पचास साल से अधिक उम्र के ऐसे लोग जिन्हें एक साथ कई अन्य बीमारियां जैसे डायबिटिज, बीपी आदि है उनको कोरोना का वैक्सीन प्राथमिकता के आधार पर अवश्य दिया जाना चाहिए।
तो इसका मतलब यह समझा जाएं कि हमने हर्ड इम्यूनिटी हासिल कर ली है?
यह हर्ड इम्यूनिटी नहीं है। हर्ड इम्यूनिटी का मतलब है कि अब कोई भी वायरस से संक्रमित नहीं होगा। भारत में हम सामुदायिक स्तर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देख रहे हैं। जिसमें अधिकांश लोग संक्रमण के प्रति तब तक सुरक्षित रहते हैं जब तक वह उसी निर्धारित दायरे में रहते हैं, और उनका बाहरी या अन्य समुदाय से अधिक मतलब नहीं होेता। उदाहरण के लिए यदि इस संस्थान में संक्रमण का खतरा सिर्फ मुझे है तो इस संस्थान में रहकर तो मैं सुरक्षित हूं लेकिन संस्थान के बाहर नहीं। इसलिए यदि मैं कहीं बाहर की यात्रा करूं तो मुझे वैक्सीन लेने की जरूरत होगी।
भारत में अभी केवल दस मिलियन लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ है, बची हुई आबादी अभी भी संक्रमण के खतरे के दायरे में है। इसलिए कोरोना का वैक्सीन लेना सभी के लिए जरूरी है। हर्ड इम्यूनिटी को प्राप्त करने के लिए टीकाकरण बहुत जरूरी है।
आपके अनुसार वैक्सीन किसको लेनी चाहिए?
अधिक जोखिम के खतरे वाले लोग जैसे हेल्थ केयर वर्कर, फ्रंट लाइन वर्कर और बुजुर्गों को कोरोना का वैक्सीन अवश्य लेना चाहिए। कोरोना संक्रमण के वर्तमान स्वरूप को देखते हुए हम कह सकते हैं कि संक्रमण स्तर निरंतर कम हो रहा है, और अगर हम कोरोना अनुरूप व्यवहार का पालन करते रहेगें तो हम संक्रमण स्तर को काबू में रख सकेगें परंतु? हम स्कूलों को कब तक बंद रख सकेगें? क्या हमारी दिनचर्या सामान्य नहीं होनी चाहिए? अर्थव्यवस्था सामान्य नहीं होनी चाहिए? और कोरोना की वैक्सीन हमें सामान्य स्थिति को जल्दी लाने में सहायक होगी। इसलिए जब भी आपकी बारी आए वैक्सीन अवश्य लगावाएं और हां यदि टीकाकरण में थोड़ा समय लग रहा है तो घबराएं नहीं।
अब वायरस की बात करते हैं, कोरोना के कारक एसएआरसीओवीटू वायरस अधिक संक्रामक क्यों हैं?
वायरस तेजी से बढ़ते और बदलते हैं। इनमें से कुछ अधिक संक्रामक हो जाते हैं। सभी कोरोना वायरस एसीईटू रिसेप्टर से मजबूती से बंधते हैं जो हमारी किडनी, फेफड़े, दिल और सांस नली के सेल्स में होते हैं। म्यूटेड कोरोना वायरस या कोविड 19 रिसेप्टरर्स से अधिक प्रभावी तरीके से बंधता है। इस वायरस की छोटी सी मात्रा भी मानव शरीर के सेल्स में प्रवेश करने में सक्षम होती है और जब बहुत कम संख्या के वायरस भी संक्रमण बढ़ाने के लिए काफी होते हैं तो वायरस अधिक तेजी से फैलते हैं।
भारत में पश्चिमी देशों की अपेक्षा कोरोना के मामले कम क्यों हैं?
देशभर में सीएसआईआर (काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) की 37 लैबोरेटरीज में सीरो सर्वेक्षण किया गया। हमारे आकड़े बताते हैं कि भारत में कोरोना के सटीक मामले रिर्पोटेड केस से तीस गुना अधिक हो सकते हैं।
सीएसआईआर सर्वेक्षण के अनुसार 70 प्रतिशत ऐसे लोग जिनके शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी पाई गई उनमें संक्रमण का कोई लक्षण नहीं देखा गया। जबकि पश्चिमी देशों में यह आंकड़ा तीस प्रतिशत है।
आप सीएसआईआर के सीरो सर्वेक्षण के बारे में और कुछ बताइये?
सीएसआईआर ने देशभर में अपनी 37 लैबोरेटरी और केन्द्रों में एक सीरो सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया। इसमें सीएसआईआर के सभी स्थाई कर्मचारी, पारिवारिक सदस्य, छात्र और ऐसे अस्थाई कर्मचारी जो संस्थान की सेवाओं में अपना योगदान देते हैं जैसे सुरक्षा, सफाई कर्मचारी, हाउस कीपिंग आदि को शामिल किया गया। इस गु्रप के माध्यम से हर सामाजिक और आर्थिक स्तर के लोग मिले, जिससे परिणाम अधिक गहरे और सार्थक प्राप्त हुए।
जिन लोगों को कोरोना संक्रमण के मामूली लक्षण होते हैं उनमें एंटीबॉडी विकसित नहीं होती, क्या यह सही है?
यह सही है, बीस प्रतिशत ऐसी आबादी जिनको कोरोना संक्रमण के जरा भी लक्षण नहीं दिखे उनमें एंटीबॉडी नहीं पाई जाएगी। यह इस बात पर भी निर्भय करता है कि कोरोना की जांच के लिए आपने कौन सा टेस्ट कराया है। एंटीबॉडी की पहचान के लिए कुछ टेस्ट अधिक प्रभावी माने गए हैं।
लेकिन वायरस के साथ एक अनिश्चितता जुड़ी रहती है, विश्वभर में इसने बहुत लोगों की जानें ली हैं?
सभी तरह के संक्रमण अनिश्चित होते हैं। कभी कभी जवान लोग मरते हैं और कभी यह बुजुर्गो को निशाना बनाता है। एक वायरस को दूसरे वायरस से अलग करने वाली केवल एक चीज है और वो है संक्रमण का स्तर। संक्रमण का अधिक गंभीर स्तर और संख्या के कारण ही कोरोना वायरस ने धरती को हिला कर रख दिया है। विश्व भर में कोरोना संक्रमण के एक बिलियन से अधिक लोग प्रभावित हैं, और यदि इतने अधिक प्रतिशत पर 0.1 प्रतिशत लोगों की भी मृत्यु होती है तो वह लाखों में गिनी जाएगी। वर्ष 2020 में इतिहास में पहली बार अमेरिका में मरने वालों का आंकड़ा तीन मिलियन के पार हो गया, वर्ष 2019 की अपेक्षा अमेरिका में वर्ष 2020 में चार लाख लोगों की अधिक मौत हुई। हालांकि भारत में संक्रमण का स्तर कम है, लेकिन संक्रमण के शुरूआती चरण में बड़े शहरों में अधिक मृत्यु देखी गई।
अब जब हमारे पास वैक्सीन है तो अब हमारी क्या योजना है?
संक्रमण के अधिक खतरे वाले सभी लोगों को तुरंत वैक्सीन दिया जाए।
क्या आप अपने परिवार का टीकाकरण करवाएगें?
क्या मैं अपने बच्चों को कोरोना का वैक्सीन लगवाउंगा इसका जवाब है नहीं, मेरे बच्चे अभी छोटे हैं उन्हें न तो संक्रमण का अधिक खतरा है और न ही वह अधिक जोखिम वाले वर्ग में आते हैं, क्या मैं अपनी मां को कोरोनो का वैैक्सीन लगवाउंगा, हां, बिल्कुल लगवाउंगा।