नींद में यूरिन पास करने की ‘आदत’ अगर उम्र बढ़ने के बाद भी बरकार रह जाए तो इससे न सिर्फ हीन भावना आ जाती है बल्कि यह किडनी की बीमारी की वजह बन सकती है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस बीमारी को हल्के में नहीं लेना चाहिए और न ही इसके लिए बच्चे को डांटना चाहिए। डॉ पीके पूर्ति और डॉ कनव आनंद बताते हैं कि इस प्रॉब्लम को समझने और वक्त पर इलाज कराने की जरूरत है। कई मामलों में यह बीमारी पैरेंट्स की वजह से भी बच्चों को भी हो जाती है।
क्या है बेड वेटिंग
कॉमन लैंग्वेज में इसे बिस्तर गीला करने की बीमारी कहते हैं। छोटे बच्चों में यह समस्या कॉमन है। थोड़ी से अटेंशन और केयर इस प्राब्लम का सॉल्यूशन हो सकती है। बचपन में इसे इग्नोर करने पर काफी परेशानी होती है। पांच से सात साल की उम्र तक सुधार नहीं होने पर दिक्कत ज्यादा बढ़ सकती है। ऐसे बच्चों में कॉम्प्लेक्स आ जाता है। डांट सुनने के बाद वे इस बारे में किसी से बात करने में भी कतराते हैं।
नॉर्मल है यह प्रॉब्लम
छोटे बच्चे कंट्रोल नहीं कर पाते और कई बार यूरिन पास होने के बारे मेंअउन्हें पता भी नहीं लगता। हालांकि तीन साल की उम्र तक बच्चे को यह पता नहीं चल पाता है कि उनका ब्लैडर फुल है। लेकिन पांच साल की उम्र तक बच्चे यह समझने लगते हैं। अगर पांच साल की उम्र के बाद भी बच्चे महीने में दो बार बिस्तर गीला करें तो उनकी आदत बदलने की जरूरत है।
कॉमन है यह बीमारी
85 पर्सेंट बच्चे पांच साल की उम्र के बाद इस पर कंट्रोल कर लेता है। हालांकि उम्र बढ़ने के साथ यह बीमारी कम होती है। दस साल की उम्र के बाद बीमारी 5 पर्सेंट बच्चों में रह जाती है और 15 साल उम्र के बाद सिर्फ एक पर्सेंट लोगों में प्रॉब्लम रहती है। यह भी सच है कि लड़कों में यह समस्या कॉमन है।
दो वजहों से समस्या
बेड गीला करने के दो कारण होते हैं। पहला प्राइमरी और दूसरा सेकंडरी। प्राइमरी कारण में बेड गीला करने वाले की प्रॉब्लम कभी कम नहीं होती। दूसरे केस में जिनके बेड गीला करने का सिलसिला छह महीने तक रुक जाता है और बाद में फिर शुरु हो जाता है, उसे सेकंडरी वजह कहते हैं।
जेनेटिक फैक्टर भी
छोटी उम्र के बच्चों के ब्लैडर की नसें मेच्योर नहीं होती हैं, इसलिए वह कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। पांच साल तक की उम्र में ऐसा होता है। छह से आठ साल की उम्र के बाद नसें मेच्योर हो जाती हैं। प्रॉब्लम का सीधा संबंध जेनेटिक फैक्टर से भी है। अगर सिंगल पैरंट में समस्या है तो 50 पर्सेंट केसों में बच्चों में भी बीमारी होती है। अगर दोनों पैरंट में यह समस्या हो तो 75 पर्सेंट केसों में बच्चे में यह समस्या होती है। अगर पैरेंट्स को समस्या न हो तो केवल 15 पर्सेंट केसों में ही बच्चों को बीमारी होती है।
हॉर्मोनल फैक्टर
बॉडी में यूरिन कंट्रोल करने के लिए हार्मोन होते हैं, इसे एंटीडीयूरेटिक हार्मोन कहते हैं। जब रात में यह हार्मोन कम होता है, तो यूरिन कंट्रोल नहीं होता। कुछ बच्चों में ब्लैडर की क्षमता की वजह से यह परेशानी होती है। इसलिए इसे डॉक्टर को दिखाना चाहिए। 12 साल की उम्र तक ब्लैडर की क्षमता अडल्ट के साइज 400 से 500 एमएल तक हो जाता है।
स्लीप डिसऑर्डर
कई बच्चे गहरी नींद में सोते हैं और रात में उनकी नींद नहीं खुलती है। स्ट्रेस, कब्ज, दीमागी सुस्ती की वजह से भी यह परेशानी होती है। अगर जागते हुए भी ऐसा हो जा रहा है तो यह चिंता की बात है। तीन साल की उम्र से ही परेशानी की बात है। ऐसे बच्चों को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
इलाज
बच्चे की उम्र और समस्या के हिसाब से डॉक्टर की सलाह से टेस्ट किए जाते हैं। पेट का एक्सरे, यूरिन टेस्ट, क्लीनिकल टेस्ट यानि के लिए डायरी चार्ट बनाना होता है। कई बार बच्चे 500 एमएल यूरिन करते हैं, लेकिन 20 बार यूरिन के लिए जाते हैं। कुछ बच्चे इतना यूरिन पास करने के लिए चार से आठ बार ही जाते हैं। डायरी मेंटेन करने से हल निकालना आसान हो जाता है।
कितना लिक्विड कब लें
40 पर्सेंट लिक्विड सुबह लें, 40 पर्सेंट दोपहर को और शाम को 20 पर्सेंट ही लिक्विड लें। सोने से दो घंटे पहले लिक्विड नहीं लें। चाय, कॉफी, कोल ड्रिंक्स से भी बचें।
दवा से इलाज
आठ साल की उम्र के बाद ही दवा से इसका इलाज करते हैं। इसके पहले बच्चे की काउंसलिंग और पैरेंट्स की काउंसलिंग की जाती है। बच्चे को जितना डांटेंगे, वह उतना ही स्ट्रेस में जाएगा और बीमारी उतनी ही बढ़ेगी। सजा देने के बजाय उनका हौसला बढ़ाना चाहिए। जिस दिन बेड गीला नहीं करें, उन्हें गिफ्ट दो या बाहर घूमने के लिए ले जाने की भरोसा दो।
बेड अलार्म
बिस्तर के नम होते ही अलार्म बजना एक नया इलाज है। यह स्पेशल बेड अलार्म बिस्तर पर थोड़ी सी भी नमी होते ही बजने या वाइब्रेट होने लगते हैं। अमेरिका में हुई एक स्टडी से यह साफ हुआ है कि बेड अलार्म का उपयोग करने वाले 66 पर्सेंट बच्चों ने अगले 14 रातों तक बेड गीला नहीं किया। आजकल एक और अलार्म आया है जिसमें सेंसर अंडरगार्मेंट में लगा दिया जाता है और अलार्म कंधे पर, जैसे ही बेड गीला होना शुरु होता है, अलार्म बचने लगता है और नींद खुल जाती है।