नई दिल्ली: बदलती जीवनशैली कई सारी परेशानियों का कारण बन रही है, जिनमें इनफर्टिलिटी या बांझपन भी एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है। बच्चा नहीं होने के कई कारणों में से एक मुख्य कारण डायबिटीज़ भी हैं। जो कि महिला या पुरुष में से किसी को भी हो सकती हैं। इंदिरा हॉस्पिटल के डॉक्टर अरविंद वैद का कहना है यदि महिला डायबिटीज से पीड़ित है तो उस स्थिति में गर्भ में पल रहा शिशु और मां दोनों के लिए खतरे की बात होती है। ऐसे में गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है।
कई बार मोटापा भी बन जाता है डायबिटीज का कारण जिन महिलाओं का वजन सामान्य से अधिक होता है, उनमें टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा सामान्य वजन वाली महिलाओं की तुलना में अधिक होता है। मोटापे से इंसुलिन रेजिस्टेंस की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। साथ ही मोटापे के कारण महिलाओं में पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम या पीसीओएस और डिसमेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा बढ़ जाता है।
ये दोनों ही समस्याएं ही बांझपन का मुख्य कारण बन सकती हैं। ‘इंसुलिन हार्मोन का एक प्रकार है और इसके असंतुलित होने से शरीर के अन्य हार्मोन्स जैसे एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टॉन और टेस्टोस्टेरॉन का स्तर भी प्रभावित होता है। हार्मोन असंतुलित के कारण महिलाओं में ओवेरियन सिस्ट व बांझपन की समस्या हो सकती है और पुरुषों में शिशन की कार्यप्रणाली प्रभावित होने से बांझपन हो सकता है।
डॉक्टर अरविंद बताते हैं कि टाइप 1 डायबिटीज होने की स्थिति में गर्भधारण करने और डायबिटीज को नियंत्रित करने की योजना उसके तीन से छह महीने पहले से ही करनी शुरू कर देनी चाहिए। गर्भधारण से पहले डॉक्टर से हर छोटी से छोटी चीज की जानकारी लें और उस पर अमल करें। इससे गर्भधारण करने के बाद पहले आठ मुश्किल हफ्ते में परेशानी नहीं आएगी और गर्भस्थ शिशु का विकास सही रूप में होगा। यदि डायबिटीज में होती हैं प्रेग्नेंट तो चिंता करने की बजाय आगे की योजना पर कार्य करना शुरू कर दें। डॉक्टर की सलाह पर अपने लिए एक बेहतर रूटीन तैयार करें, डाइट और व्यायाम को लेकर और उसका पालन करें। लेकिन बिना सलाह के कोई भी परिवर्तन न करें।