नई दिल्ली,
कोरोना पॉजिटिव होना मतलब अछूत होना या चर्म रोग होने जैसा है क्या, सफदरजंग अस्पताल से इलाज कराकर लौटे गाजियाबाद के कोरोना पॉजिटिव मरीज ने सेहत365 की टीम के साथ 16 दिन तक चले अपने इलाज और कोरेंटाइन के अनुभवों को साक्षा किया। ईरान से यात्रा करके लौटे रहे गाजियाबाद के मरीज एसएन मेहता को सोमवार को सफदरजंग अस्पताल से छुट्टी दी गई।
एक मार्च को ईरान से वापसी के दौरान उनकी एअरपोर्ट पर जांच हुई, लेकिन उस समय कोई लक्षण सामने नहीं आए। एअरपोर्ट से कुछ सैंपल लिए गए थे, जिसे बाद में पॉजिटिव पाया गया और आरएमएल अस्पताल से फोन आने पर मेहता जी के अस्पताल में भर्ती किया गया। श्ुारूआत में उन्हें पांच से छह मरीजों के साथ रखा गया, बाद में सभी को अलग अलग कमरे में रख कर बाहर से ताला लगा दिया गया, मैं घबरा गया और पूछा मुझे अंदर से क्यों बंद कर रहे हो, मेरी मानसिक हालत ठीक नहीं थी, मैं अपनी पत्नी और बेटे से भी नहीं मिल पा रहा था। दो दिन बाद मुझे सफदरजंग अस्पताल के एसएसबी ब्लॉक में शिफ्ट कर दिया गया, पास में केवल फोन था, जिसके माध्यम से मैं सुबह शाम अपनी पत्नी और बेटे से बात कर लेता था, लेकिन किसी चीज की जरूरत हो तो कोई सुनने वाला नहीं होता था, चिकित्सक तक अपनी बात पहुंचाना मुश्किल हो गया था। स्टाफ नर्स को हिंदी समझ नहीं आती थी, सामान रखते ही सब तुरंत भाग जाते थे, मैंं खुद को बहूत असहाय समझ रहा था, लग रहा था मुझे कोई छूत की बीमारी हो गई है या फिर मैं अछूत हूं, मानसिक तनाव से उबरने के लिए ओशो को पढ़ना शुरू किया, लिखकर किताबें मंगाने का अनुरोध किया, ध्यान और योग किया, लेकिन बहुत मुश्किल थे बीते 20 दिन। मुझे सोमवार को छुट्टी मिल गई है, लेकिन तबियत अभी भी ठीक नहीं है, मुझे लगातार सिर मे दर्द हो रहा है, खांसी और बुखार बना हुआ है, चिकित्सकों ने छुट्टी देते हुए कोई दवा भी नहीं दी। बहुत कड़वे अनुभवों के बाद भी यहीं कहना चाहता हूं डॉक्टरों ने मुझे ठीक कर दिया उनका यह एहसान कभी नहीं भूलने वाला है। मुझ से यह बीमारी मेरे बेटे का हुई, हालांकि पत्नी की रिपोर्ट नेगेटिव आई है। कोरोना पॉजिटिव की बात फैलते ही लोगों ने बात करना बंद कर दिया है, हमारा घर सोसाइटी से अलग थलग पड़ गया है। मिस्टर मेहता ईरान में एक कंपनी चलाते हैं, उनका 27 वर्षीय बेटा भी कंपनी का मालिक है।