एक रुपये में रुमैटिक हार्ट डिजीज का इलाज

नई दिल्ली: सिर्फ एक रुपये कीमत के पेंसिलिन इंजेक्शन से रुमैटिक हार्ट डिजीज (आरएचडी) को 99 पर्सेंट तक रोका जा सकता है। एम्स के डॉक्टर का दावा है कि इंजेक्टेबल बेनाजाइथीन पेंसिलिन एक ऐसी दवा है जो आरएचडी के इलाज में कारगर है। एम्स के डॉक्टरों ने इस इंजेक्शन से मरीजों को हो रहे फायदे को लेकर अपने जनरल ऑफ द प्रैक्टिस ऑफ कार्डियोवास्कुलर साइंस में एक आर्टिकल पब्लिश किया गया है। एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि पूरे देश में यह इंजेक्शन फ्री उपलब्ध हो।

बैक्टीरिया से होती है बीमारी
एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग के डॉक्टर संदीप सेठ ने कहा कि रुमैटिक हार्ट डिजीज की वजह बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है। एक बार अगर मरीज के हार्ट की बीमारी का डायग्नोस हो जाए तो फिर इस बीमारी को रोका जा सकता है। डॉक्टर संदीप ने कहा कि केवल एक रुपये का पेंसिलिन इंजेक्शन मरीज की ना केवल जान बचा सकता है बल्कि 99 पर्सेंट इस बीमारी को फैलने से रोक सकता है। इसकी रोकथाम के लिए मरीज को हर तीन हफ्ते में इस एक रुपये वाली इंजेक्शन लेने की जरूरत है।

ऑनलाइन जनरल में जानकारी
डॉक्टर संदीप ने कहा कि कई इलाज हैं जो बहुत ही सस्ते और सरल हैं लेकिन बहुत सारे डॉक्टर इस बात से अनजान होते हैं। ऐसे डॉक्टरों के लिए ही एम्स ने नया जनरल को पब्लिश करना शुरु किया है, ताकि देश के बाकी डॉक्टर इलाज के नए नए तरीके और नई नई जांच को अपने यहां अपना सकें। डॉक्टर संदीप ने कहा कि यह जनरल ऑनलाइन फ्री उपलब्ध है।

हार्ट मसल्स डैमेज होने का खतरा
एम्स के डॉक्टर ने बताया कि 5 से 15 साल की उम्र के बच्चों में थ्रोट इनफेक्शन होता है। आमतौर पर बच्चा इलाज के बाद ठीक हो जाता है, लेकिन कुछ बच्चों में बीमारी के तीन से चार हफ्ते बाद जोड़ों में दर्द होने लगता है बाद में वह ठीक हो जाता है। अगर इन्फेक्शन पूरी तरह से खत्म नहीं होता है तो इसकी वजह से हार्ट डिजीज का खतरा होता है। इसमें हार्ट में इनफेक्शन हो जाता है। इस वजह से बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन के लिए हार्ट को ज्यादा पंप करना पड़ता है, जिससे हार्ट के मसल्स के डैमेज होने का खतरा रहता है।

हार्ट फेल्योर भी हो जाता है
डॉक्टर सेठ ने कहा कि वेस्टर्न कंट्री में यह बीमारी कम है, लेकिन अपने देश में हार्ट फेल्योर का 11 पर्सेंट कारण यही है। उन्होंने कहा कि भीड़भाड़ जगह में इसके फैलने की संभावना ज्यादा रहती है। यूएस में एक मिलिट्री कैंप में इस बीमारी के कई मरीज की पहचान की गई थी, इसकी वजह यही थी कि लोग एक दूसरे के संपर्क में आए और इनफेक्शन हो गया।

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