दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा खाने में ट्रांस फैट

48507384 – fast food and unhealthy eating concept – close up of hamburger or cheeseburger, deep-fried squid rings, french fries, pizza and ketchup on wooden table top view

नई दिल्ली, आपने खाने के तेल में जरूरत से अधिक ट्रांस फैट मौजूद है, जो दिल के लिए घातक है। पहली बार देश के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण ने इस बावत गाइडलाइन तैयार करने के लिए भारत सरकार को पत्र लिखा है। एफएसएसआई के इस प्रयास के बाद वर्ष 2022 तक खाने के सभी पैकक्ड तेल में ट्रांस फैट की मात्रा दो प्रतिशत तक निर्धारित कर दी जाएगी।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डॉ. केके अग्रवाल ने बताया कि इससे पहले 21 जून 2018 को भारत के स्वास्थ्य एवं परिवारण कल्याण मंत्रालय और न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय को लिखे पत्र में हार्ट केयर फाउंडेशन ने सभी व्यवसायिक रेस्टोरेंट में इस्तेमाल किए जाने वाले तेल को ट्रांस फैट मुक्त करने की मांग की थी। इसी क्रम में खाद्य सुरक्षा एवं प्राधिकरण का यह फैसला स्वागत करने योग्य है, इससे लोग ट्रांस फैट के अधिक सेवन से बचेंगे। प्राकृतिक तेलों में हाइड्रोजन मिलाकर ट्रांसफैट बनाया जाता है, यह तेल को अधिक दिनों तक संरक्षित रखने में मदद करता है। रेस्टोरेंट में सबसे अधिक इस तरह के तेल का इस्तेमाल होता है क्योंकि वह अधिक दिनों तक तेल को बार बार प्रयोग करते हैं। हालांकि यूएस एफडीए ने इस बावत बहुत पहले ही नियमों का खाका तैयार कर दिया था। देश में ट्रांसफैट के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान के बारे मे लोगों को पता नहीं है यह खून में सैचुरेटेड फैट के मुकाबले में एलडीएल की मात्रा को बढ़ाता है और एचडीएल को कम करता है। ट्रांस फैट को दिल की धमनियों में संकुचन की वजह भी माना जाता है।

कैसे बनता है टांस फैट
प्राकृतिक सब्जियों के तेल से हाइड्रोजन मॉलिक्यूल को निकला कर ट्रांस फैट तैयार किया जाता है। इससे प्राकृतिक तेल की संरचना बदल जाती है। हाइड्रोजन मॉलिक्यूल निकालने के बाद प्राकृतिक तेल ठोस में बदल जाते हैं, हाइड्रोजन निकालने की इस पूरी प्रक्रिया को बहुत ही अधिक तापमान पर किया जाता है इस समय हाइड्रोजन गैस और मेटल कैटालिस्ट का भी इस्तेमाल होता है। इस सबका नतीजा यह होता है कि तेल को बनाने की यह रासायनिक प्रक्रिया हानिकारक हो जाती है। जो इससे प्रक्रिया से तैयार तेल खाने के लिए अधिक बेहतर नहीं रह पाता।
ट्रांस फैट युक्त खाने में कैलोरी और शुगर की मात्रा अधिक होती है, जिसकी वजह से टाइप टू डायबिटिज और अधिक वजन की समस्या अधिक होती है। यहीं वजह है कि रेस्ट्रां में खाने वाले लोगों का वजन घर पर खाना खाने वालों के एवज में अधिक बढ़ जाता है।

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