नई दिल्ली,
देश में इस समय 1.5 लाख मरीज डायलिसिस पर हैं, जिन्हें किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत है। कार्निया के लिए एक लाख लोग इंतजार की सूची में हैं। इन मरीजों को दूसरों की मदद से सही किया जा सकता है, लेकिन अब भी जरूरत के अनुसार केवल दो प्रतिशत लोग ही अंगदान के लिए आगे आते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के आरबो केन्द्र पर अब तक 15000 लोगों ने अंगदान के लिए पंजीकरण कराया है।
अंगदान को बढ़ावा देने के लिए आरबो (ऑर्गन रिट्राइवल बैंकिंग आर्गेनाइजेशन) ने एक पुस्तक जारी की है। द ट्रिब्यूट टू लाइफ का विमोचन केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने किया। उन्होंने कहा कि किताब में अंगदान करने वाले लोगों की भावनाओं को शामिल किया गया है। जिसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं, मृत मस्तिष्क के बाद जिनके अंग दूसरों के शरीर में अब भी जिंदा हैं। एम्स की डॉ. आरती विज ने बताया कि जरूरत के अनुसार अंगदान करने वालों की कमी है। डायलिसिस के 1.5 लाख मरीजों के एवज में केवल 3500 मरीजों का ही किडनी प्रत्यारोपण हो सका। जबकि आंखों की रोशनी के लिए अब तक 25000 का कार्निया प्रत्यारोपण किया गया। दिल और लिवर के मरीजों की हालत इससे बेहतर नहीं है।
कौन कर सकता है अंगदान
आरबों में अंगदान पंजीकरण के बाद उसी व्यक्ति के अंगों को इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसकी मौत ब्र्रेन डेथ से हुई हो, मतलब सड़क दुर्घटना में मरने वाले सभी लोगों के अंगों को मरीजों के लिए प्रयोग किया जा सकता है, बशर्ते उन्होंने अंगदान के लिए पंजीकरण करा रखा हो। पंजीकरण के बाद डोनर कार्ड जारी किया जाता है। परिजनों की सहमति से मरने वाले के अंग निर्धारित समय में जरूरतमंद को दिए जाते हैं।
किस अंग के लिए कितना समय
हृदय – 6 घंटे के भीतर
लिवर – 5 घंटे में
कार्निया – एक साल तक
किडनी – 8 घंटे के अंदर
हड्डियां – 10 घंटे में
पैंक्रियाज- 5 घंटे में
(लिवर व किडनी के लिए सजीव प्रत्यरोपण हो सकता है, जबकि अन्य के लिए कैडेवर (मस्तिष्क मृत) की जरूरत होती है।)