दमा, सीओपीडी से 2015 में दुनिया भर में 36 लाख लोगों की मौत

नई दिल्ली: लांसेट पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक सांस की दो आम बीमारियां-दमा और सीओपीडी- ने 2015 में दुनिया भर में तकरीबन 36 लाख लोगों की जान ले ली जबकि भारत और तीन अन्य देश सीओपीडी से सर्वाधिक पीड़ित हैं। लांसेट रिस्पीरेटरी मेडिसिन ‘ जर्नल में प्रकाशित ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डीजीज ‘ अध्ययन के अनुसार 2015 में सिर्फ सीओपीडी से 32 लाख लोगों की मौत हुई। दमा के चलते 4 लाख लोगों की जान गई। रिपोर्ट में कहा गया, ‘ ‘सीओपीडी के चलते 2015 में सबसे ज्यादा पापुआ न्यू गिनी, भारत, लिसोथो और नेपाल में बीमार हुए, और दमा के सबसे ज्यादा बीमार अफगानिस्तान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, फिजी, किरीबाती, लिसोथो, पापुआ न्यू गिनी और स्वाजीलैंड में हैं।

मेडिकल जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 में भारत में प्रति एक लाख व्यक्ति सीओपीडी के 2774.64 मामले (2533-3027.38) रहे जबकि प्रति एक लाख व्यक्ति दमा के 4021.72 मामले (3637.41-4424.58) रहे। इस अध्ययन में 1990 और 2015 के बीच दुनिया भर में दोनों बीमारियों के संदर्भ में रोग के मामलों और उससे मरने वालों की संख्या का आकलन किया गया है। सीओपीडी फेफडे की बीमारियों का एक समूह है जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है. यह दिक्कतें ज्यादातर धूम्रपान करने और वायु प्रदूषण के चलते होती हैं। स्टडी में इंगित किया गया है कि 1990 के बाद से रोग और मृत्यु की समग्र दर में लगातार गिरावट आई है, लेकिन आबादी में इजाफा और बूढ़े होते लोगों के प्रतिशत में इजाफा से रोगियों की तादाद में इजाफा हुआ है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 1990 और 2015 के बीच सीओपीडी के चलते मरने वाले लोगों की तादाद में 11.60 प्रतिशत का इजाफा हुआ है और यह 28 लाख से बढ़ कर 32 लाख हो गई है. इसी दौरान इससे पीडति लोगो की संख्या में 44.2 प्रतिशत का जबरदस्त इजाफा हुआ है और उनकी संख्या 12 करोड 10 लाख से बढ़ कर 17 करोड 45 लाख हो गई है। इसकी तुलना में इस दौरान दमा से होने वाली मौतों में 26.2 की जबरदस्त गिरावट आई है और यह तादाद साढ़े पांच लाख से घट कर चार लाख हो गई है, लेकिन रोग से ग्रस्त लोगों की संख्या में यह रझान उलटा रहा। उनकी तादाद 31 करोड 82 लाख से बढ़ कर 35 करोड 82 लाख हो गई। अध्ययन में कहा गया है कि रोगों की इतनी बडी संख्या के चलते ज्यादा लोग अपंगता के साथ रह रहे हैं. ऐसे ज्यादातर लोग विकासशील क्षेत्रों में रहते हैं।

सोर्स: भाषा

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