एडस प्रभावित लोगों के उपचार, शिक्षण संस्थानों में दाखिले और रोजगार के अलावा अन्य स्थानों पर किसी भी तरह के भेदभाव की रोकथाम को सुनिश्चित करने वाले एक महत्वपूण विधेयक को आज राज्यसभा ने पारित कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री जे पी नडडा के प्रस्ताव पर उच्च सदन ने मानव रोगक्षम अल्पता विषाणु और अर्जित रोगक्षम अल्पता संलक्षण :निवारण और नियंत्रण: विधेयक को सरकारी संशोधनों के साथ ध्वनिमत से पारित कर दिया। इससे पूर्व नडडा ने विधेयक पर हुई चचार् का जवाब देते हुए कहा कि कानून बनाते समय इस बात को ध्यान में रखा जायेगा कि भारत में इस रोग से संक्रमित कोई भी व्यक्ति उपचार का पात्र होगा और उसके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जायेगा। उन्होंने कहा कि भारत के सक्रिय पहल के कारण इस संक्रमण की दर विश्व की औसत गिरावट दर से कम हुई है। उन्होंने कहा कि वैश्विक औसत गिरावट की दर 35 प्रतिशत है जबकि भारत में यह गिरावट दर 67 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि 100 की संख्या वाले कर्मचारियों वाले संगठनों के लिए एक शिकायत अधिकारी होगा जबकि स्वास्थ्य केन्द्र, जहां संक्रमण का खतरा अधिक रहता है, वहां 20 कर्मचारियों पर एक शिकायत अधिकारी होंगे।जारी भाषा राजेश अविनाश माधव इससे पहले विधेयक पेश करते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नडडा ने कहा कि यह विधेयक 2014 में राज्यसभा में पेश किया गया था। इसे स्थायी समिति के पास भेजा गया। स्थायी समिति ने इस पर 11 सिफारिशें दी थीं जिनमें से 10 सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक का मकसद एचआईवी:एडस प्रभावित लोगों को अधिकार संपन्न बनाना और उनके खिलाफ भेदभाव को समाप्त करना है। सरकार चाहती है कि इससे प्रभावित लोगों के साथ शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सुविधाओं, जन सेवाओं और पैतक संपत्ति अर्जित करने के मामले में कोई भेदभाव न हो। नडडा ने कहा कि विधेयक में एचआईवी:एडस प्रभावित लोगों के साथ भेदभाव तथा अन्य अपराधों को दंडनीय बनाया गया है। उन्होंने कहा कि विधेयक में कार्य स्थलों पर ऐसा माहौल सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है ताकि वे सुविधाजनक ढंग से काम कर सकें। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों की शिकायतों का समयबद्ध ढंग से निस्तारण किया गया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने कहा कि देश में राष्ट्रीय एडस नियंत्रण कार्यक्रम को काफी सफलता मिली है। किंतु इस क्षेत्र में अभी काफी कुछ प्रयास करने की जरूरत है क्योंकि ऐसे मामलों में मत्यु की दर भारत में 54 प्रतिशत है जबकि इसकी औसत दर 41 फीसदी है। विधेयक पर हुई चचार् में भाग लेते हुए कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि इस विधेयक के लिए पिछले 25 वर्ष से प्रयास चल रहे हैं। पूर्ववतीर् अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासनकाल में तत्कालीन विपक्ष की नेता सोनिया गांधी को इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में भारतीय दल का प्रमुख बना कर भेजा गया था।