नई दिल्ली: एंटीबायटिक का अनुचित प्रयोग एंटीबायटिक की रेसिस्टेंस को बढ़ने का सबसे प्रमुख कारण है। इस बारे में डब्लयूएच ओ द्वारा 2014 में जारी की गई एंटीमाइक्रोबायल रेसिस्टेंसः ग्लोबल रिपोर्ट ऑन सर्विलेंस नामक पहली रिपोर्ट के मुताबिक एंटीबायटिक रेसिस्टेंस स्वास्थय की एक प्रमुख समस्या है जो पूरी दुनिया में हर उम्र वर्ग के लोगों में मौजूद है।
फरवरी 2017 में सीडीसी के एमरजिंग इनफैक्शस डिसीज़ नामक जरनल में प्रकाशित नए अध्ययन के मुताबिक फंगल रोग की नियमित जांच की कमी होने की वजह से अनावश्यक एंटीमाईक्रोबायल समस्याएं बढ़ रही हैं। इस बारे में जानकारी आईएमए के नैशनल प्रेसीडेंट एंव एचसीएफआई के प्रेसीडेंट डॉक्टर के के अग्रवाल का कहना है कि फंगल संक्रमण के बारे में जागरूक रहना और उनकी रेस्सिटेंस के मैकनिज़म को समझना बेहद आवश्यक है ताकि रेसिस्टेंस को कम किया जा सके। फंगल की कुछ प्रजातियां प्रकृतिक रूप से कुछ दवाओं के प्रती प्रतिरोधक होती हैं जबकि कुछ के लिए यह समय के साथ पैदा हो जाती है।
एंटीफंगल दवाओं के अनुचित प्रयोग, सही ख़ुराक ना देना या इलाज की उचित योजना ना होना इसके कारण होते हैं। हस्पतालों और आईसीयू में फंगल सेप्सिस की गलत जांच से मरीज़ों पर कई किस्म की एंटीबायटिक्स का अनुचित प्रयोग होता है जो इस समस्या का प्रमुख कारण बन जाता है। डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि फंगल रोगों की जांच में सुधार और इनका पालन करने से ही एंटीबायटिक के अनुचित प्रयोग को रोकने में मदद मिलेगी जिसका असर एंटीमाईक्रोबायल रेसिस्टेंस पर होता है। कई प्रमुख एंटीफंगल संक्रमणों की जांच के लिए किफ़ायती डायग्नोस्टिक टैस्ट मौजूद हैं, लेकिन उनका बड़े स्तर पर प्रयोग ही नहीं होता। स्वस्थय कर्मियों को इसके लिए
बेहतर प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ताकि सही दवाएं दी जा सकें।
स्वास्थय कर्मी इन बातों का रखें ध्यान रखें
: एंटीफंगल दवाओं की सलाह उचित तरीके से करें, जिसमें उचित ख़ुराक और दवा देने की समय सारणी हो। इस बात की निगरानी रखें कि मरीज़ इसका पूरी तरह से पालन कर रहा है।
: ख़ुराक, अवधी और संकेत को दस्तावेज़ों में दर्ज किया जाए।
: स्थानीय एंटीफंगल रेसिस्टेंस पैटर्न के बारे में जागरूक रहें।
: अपने हस्पताल में एंटीफंगल दवाएं लिखने की उचित प्रैक्टिस को बढ़ावा दें
: हाथों की स्वच्छता और अन्य संक्रमणरोधी मापदंडों को हर मरीज़ पर अपनाएं