नई दिल्ली: एडवर्स ड्रग इवेंट्स (एडीईज) यानि दवाओं के उल्टा असर की घटनाओं की वजह से कई गंभीर परेशानी होती है और हर साल इसकी वजह से अनेकों लोगों की जान चली जाती है। अगर चिकित्सा संस्थान एडीईज को रोकने पर जांचने का ढांचा मजबूत करें तो ऐसी अनेक परेशानी और मौतों और अस्पतालों पर होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है।
स्वीडन के शोधकर्ताओं ने 22 मेटा स्टडी का अध्ययन किया और इस स्टडी के अनुसार मानवीय गलती को रोकना असंभव है, इसलिए इस गलती को कम करने का एक ढांचा विकसित करना होगा। अध्ययन बताता है-ओपीडी में अस्पताल या आपातकालीन इलाज में रोकी जा सकने वाले दवा के प्रतिकूल प्रभाव वाली घटनाएं करीब 2 प्रतिशत होती हैं, जिनमें से 51 प्रतिशत को रोका जा सकता है।
: उम्रदराज़ लोगों में दवाओं के 71 प्रतिशत प्रतिकूल प्रभावों को रोका जा सकता है।
: अस्पताल में दाखिल मरीज़ों में दवाओं के खतरनाक प्रतिकूल प्रभाव 1.6 प्रतिशत होते हैं और उन में से 45 प्रतिशत रोके जा सकते हैं।
: एक तिहाई रोके जा सकने वाले दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव जानलेवा होते हैं।
: अध्ययन में ये भी पाया गया कि एडीई की किस्म और गंभीरता से अस्पताल में रहना के समय की अवधि और खर्च पर भी असर होता है। : बोन मैरो, डिप्रेशन, सीज़र या ब्लीडिंग की वजह से औसतन 20 दिन तक अस्पताल में रहना पड़ सकता है जबकि कम गंभीर एडीई में 13 दिन और बिना एडीई के 5 दिन अस्पताल में रहना होता है। इस तरह एडीई वालों का अस्पताल का खर्च कई गुना बढ़ जाता है।
आईएमए के नैशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट और एचसीएफआई के प्रेसीडेंट डॉ केके अग्रवाल का कहना है कि दवा की ओवरडोज और इंटरनल ब्लीडिंग के साथ ब्लड थीनर और पेनकिलर का अनुचित प्रयोग ख़ास तौर पर उम्रदराज़ लोगों में जानलेवा हो सकता है। देखभाल में तालमेल की कमी, स्वास्थय सेवा कर्मियों में समय और जानकारी का अभाव और मरीज के बारे में शिक्षण की कमी इसे प्रमुख कारणें में से कुछ हैं।
उन्होंने कहा कि दवा देने की गलतियां एडीईज़ का प्रमुख कारण है, दवा देना भूल जाना, गलत दवा लिखना, गलत तरीका, दोहरी थैरेपी, ड्रग इंटररिएक्शन, उपकरण खराब होना, बनाते या मिलाते समय गड़बड़ी या अनुचित निगरानी इसके प्रमुख कारण हैं। चिकित्सा संस्थानों और मरीज के स्थानीय स्तर पर दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव का पता लगाया जा सकता है और काफी हद तक रोका भी जा सकता है।
डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि मरीज़ों को दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव की जानकारी देने में तेजी से भूमिका निभानी चाहिए। भारत में एडीआर की निगरानी और जानकारी देना अभी भी बेहद कम है; फार्मा को विजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया पीवीपीआई एक बेहतरीन भूमिका निभा रहा है।
दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों की जानकारी देने के मौजूदा ढांचे में सुधार की आवश्यकता है, यहां तक कि नर्सिंग मेडिकेशन और मॉनिटरिंग सिस्टम को मज़बूत करने की भी ज़रूरत है। सबसे ज़्यादा ज़रूरी है मेडिकल पेशेवरों के लिए बेहतर माहौल बनाना ताकि वह बिना सजा या गंभीर नतीज़ों के डर के एडीआरज़ की जानकारी दे सकें। अपनी मर्ज़ी से खुद ही दवा लेने की प्रवृति को भी रोकना होगा।