बटन के आकार का उपकरण ठीक करेगा आंखों का कैंसर

आंखों के कैंसर (रेटिनोब्लास्टोमा) के लिए मरीजों को अब रेडियोथेरेपी या लेजर थेरेपी की जरूरत नहीं होगी। एम्स के आरपी सेंटर ने उत्तर भारत में पहली बार आंखों के कैंसर युक्त ट्यूमर के लिए रेडियोएक्टिव किरणों का इस्तेमाल किया है। पलकों के ऊपर लगाई गई बटन के आकार की चिप कैंसर युक्त सेल्स पर लगातार असर करती रहेगी।

आरपी सेंटर में चिप क जरिए अब तक दो मरीजों के आंखों के प्रारंभिक चरण के ट्यूमर पर रेडियोएक्टिव चिप का इस्तेमाल किया है। जिसमें 12 से पांच दिन के अंदर चिप को निकाल दिया गया। आरपी सेंटर की डॉ. भावना चावला ने बताया कि चिप लगे रहने तक मरीज को अस्पताल में ही रखा जाता है ट्यूमर के आकार के अनुसार रेडियोएक्टिव की मात्रा निर्धारित कर उसे आंखों की पलक पर लगा दिया जाता है। इस दौरान लगातार किरणें ट्यूमर पर असर करती रहती है। रेडियाएक्टिव प्लॉक ब्रेक्रिथेरेपी का इस्तेमाल पहली बार किसी सरकारी संस्थान में किया गया है। चेन्नई और हैदराबाद में निजी संस्थान आंखों के कैंसर के लिए रेडियोएक्टिव का प्रयोग कर रहे हैं। आरपी सेंटर के प्रमुख डॉ. अतुल कुमार ने बताया के आंखों के कैंसर के लक्षण भी सफेद या काला मोतियाबिंद जैसे ही होती हैं, जिसका असर बच्चों पर अधिक होता है। एम्स में हर साल 300 नये मरीज रेडिनोब्लास्टोमा की शिकायत लेकर पहुंचते हैं।

एक साल तक कर सकते हैं प्रयोग
जर्मनी से मंगाए गए रूथेनियम रेडियोएक्टिव को एक साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। अहम यह है कि एक बार एक मरीज में प्रयोग की गई चिप को दूसरे मरीज के लिए भी प्रयोग में लाया जा सकता है। रेडियोएक्टिव चिप के चिकित्सीय उपकरण के इस्तेमाल से पहले एम्स ने भाभा अनुसंधान केन्द्र ने अनुमति ली। बच्चों में आंखों के कैंसर को रेटिनोब्लास्टोमा कहा जाता है तो व्यस्क में आंखों के कैंसर को मेलोनोमा कहा जाता है।

आंखों खोने के बाद पहुंचते हैं एम्स
आंखों का कैंसर की वजह जीन की गड़बड़ी को माना गया है क्रोमोजोन 13 की वजह से आंखों का ट्यूमर कैंसर युक्त होता है। एम्स पहुंचने वाले 80 प्रतिशत बच्चे अंतिम अवस्था में पहुंचते हैं, जिसमें आंखें निकालना ही एक मात्र विकल्प रहता है। जबकि कुछ अहम लक्षण पहचान कर मरीज को बचाया जा सकता है।

क्या है शुरूआती लक्षण
– आंखों के बीच में पुतली पर सफेद रंग का घेरा होता
– यह मोती के आकार का घेरा बेहद चमकीला होता है
– लगातार बच्चों को दिखना बंद या धुंधला दिखाई देता है
– आप्थेमेलोस्कोपी से ट्यूमर की जांच की जा सकती है।

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