दस चीजें जरूर खाएं, इससे फेफड़े रहेगें दुरूस्त

नई दिल्ली
फेफड़ों को स्वस्थ्य रखने के लिए आपके अपने खाने की आदतों में थोड़ा बदलाव करना होगा। चिकित्सकों के अनुसार अखरोट, ब्रोकली, अदरक, लहसून, बेरी, फलेक्स सीड्स या अलसी को खाने में शामिल कर फेफड़ों को स्वस्थ्य रखा जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 235 मिलियन लोग अस्थमा का शिकार होते हैं, जिसकी वजह वातावरण में बढ़ता प्रदूषण और दूषित हवा है। शरीर के सबसे जरूरी इस अंग को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि नियमित व्यायाम के साथ ही खाने में हेल्दी चीजें भी शामिल की जाएं।
सेब- शोध के जरिए यह साबित हुआ है कि विटामिन सी, ई और बीटा कैरेटोन फेफड़ों के लिए लाभदायक हैं। यह सभी गुण सेब में पाए जाते हैं। सेब में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्टीडेंट भी पाए जाते हैं।
अखरोट- वॉलनट्स या अखरोट को ओमेगा थ्री युक्त फैटी एसिड युक्त माना जाता है। रोजाना एक मुठ्ठी अखरोट खाने से अस्थमा और सांस संबंध किसी भी समस्या से दूर रहा जा सकता है। एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण अखरोट फेफड़ों की नसों में संकुचन की समस्या को दूर करता है।
बेरी-बेरिज को विटामिन सी से भरपूर माना गया है। यह संकुचन के साथ ही सेल्स के क्षतिग्रस्त होने की प्रक्रिया को दुरूस्त करती है। बेरी में एंटी ऑक्सीडेंट भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो फ्री रेडिकल्स को नियंत्रित करता है।
ब्रोकली- ब्रोकली को विटामिन सी का बेहतर स्त्रोत माना गया है। इसमें कैरोटेनायड, फोलेट और फायटोकैमिकल्स की भी बेहतर मात्रा होती है। यह सभी फेफड़े में सेल्स की क्षति को ठीक कर उसे दुरूस्त करते हैं। कहा जाता है कि ब्रोकली में एक्टिव एल सल्फोराफेन पाया जाता है, जो फेफड़ों की नसों में होने संकुचन के लिए जिम्मेदार जीन को बढ़ने से रोकता है।
लाल मिर्च- बीटा कैरोटिन होने की वजह से लाल मिर्च को अस्थमा से बचाव के लिए बेहतर साधन माना जाता है।
उपर और लोवर रेस्पेरेटरी टै्रक्ट में होने वाली गड़बड़ी से बचाने के लिए भी लाल मिर्च का इस्तेमाल किया जा सकता है।
अदरक- अदरक को केवल एंटी इंफ्लेमेटरी ही नहीं माना गया है बल्कि यह फेफड़े तक पहुंचे पर्यावरण के दूषित कणों को डिटॉक्स करने के लिए भी बेहद कारगर है। अदरक से सेवन से सांस लेने में दिक्कत या कंजेशन, सांस में तकलीफ सहित अन्य कई परेशानियों को दूर किया जा सकता है। अदरक के इस्तेमाल से फेफड़े स्वस्थ्य रहते हैं।
फलेक्सीडस या अलसी- ब्रिटिस मेडिकल जर्नल में छपे एक शोध पत्र के अनुसार चूहों पर किए गए प्रयोग के बाद अलसी के इस्तेमाल से फेफड़ो पर रेडिएशन के असर को कम किया जा सका। कहा जा सकता है कि अलसी का नियमित प्रयोग रेडिएशन से होने वाले खतरों को कम कर देता है।
लहसून- लहसून में फ्लेवोनड्स पाए जाता है जो ग्लूटेथियॉन को नियंत्रित करता है। लहसूस कार्सियोजेनिक तत्वों और टॉक्सिन तत्वों को दूर करता है। टॉक्सिन पद्धार्थ दूर रहने के कारण फेफड़े अधिक बेहतर ढंग से काम करते हैं।

पानी- शरीर को दुरूस्त रखने के लिए पानी से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। पानी कम पीने की वजह से फेफड़ों में सिकुड़न बढ़ सकता है आठ से दस गिलास पानी का नियमित सेवन करने से यह शरीर को डिटॉक्स और वेल हाइडे्रट रखता है।

हल्दी- हल्दी या हल्दी की गांठ में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी तत्व फेफड़े को स्वस्थ्य रखते हैं, इससे श्वांस नली में ऑक्सीजन की सही तरह से आपूर्ति होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *