नई दिल्ली: ग्लोबल पॉजिशनिंग सिस्टम (GPS) का इस्तेमाल दुनिया भर में रास्ते का पता लगाने के लिए होता है, लेकिन अब डॉक्टर इसकी मदद से सर्जरी करने लगे हैं। भारत में भी डॉटर जीपीएस का यूज ब्रेन सर्जरी के लिए करने लगे हैँ। डॉक्टर जीपीएस की मदद से सर्जरी के दौरान यह जानने में सक्षम होते हैं कि सर्जरी सही हो रही है या नहीं। यह सर्जरी में गलती की संभावना काफी कम करता है।
35 साल के राहुल गर्ग सिर दर्द से परेशान थे। उन्हें मिरगी का दौरा भी आने लगा था। उन्हें ठीक से बोलने और बातों को समझने में भी दिक्कत होने लगी। वह अपने काम पर फोकस नहीं कर पा रहे थे। एमआरआई जांच में पता चला कि उनके ब्रेन में एक ट्यूमर है, जो
बोलने वाले हिस्से (ब्रोका एरिया) पर प्रेशर डाल रहा है। कई डॉक्टरों ने खोपड़ी खोलकर सर्जरी करने की सलाह दी। इसमें बोलने की क्षमता खत्म होने का खतरा था। जांच में पता चला, ट्यूमर की साइज करीब 6 सेंटीमीटर है।
आर्टेमस हॉस्पिटल के न्यूरोसर्जन डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने बताया कि इस ऑपरेशन को स्पेशल तकनीक न्यूरोनैविगेशन से किया गया। सर्जरी से पहले मरीज के स्पेशल एमआरआई की स्टडी की गई। इस तकनीक में सिर के बाल भी साफ करने की जरूरत नहीं पड़ी। ट्यूमर के बिल्कुल ऊपर एक छेद किया गया। इस तकनीक में सर्जरी के बाद होने वाले डैमेज से बचा जा सकता है। डॉक्टर ने कहा कि एमआरआई की मदद से बोलने और समझने वाले ब्रेन के उस हिस्से को मार्क कर लिया गया ताकि सर्जरी से उसे कोई नुकसान नहीं हो। डॉक्टर गुप्ता ने कहा कि ट्यूमर हटने के बाद मरीज में काफी तेजी से सुधार हुआ। सर्जरी के दो दिन बाद ही उन्हें छुट्टी दे दी गई और अब वह नॉर्मल लाइफ जी रहे हैं।
यह तकनीक ब्रेन के अंदर जीपीएस नैविगेशन की तरह काम करती है और इससे ट्यूमर तक सही ढंग से पहुंचा जा सकता है। एक स्पेशल वर्कस्टेशन में जब एमआरआई से मिली सूचनाएं फीड की जाती है, तो सिस्टम एमआरआई इमेज और ऑपरेंटिंग रूम में मौजूद मरीज को पहचानना शुरू कर देता है। डेटा के दो सैट आपस में मिलाए जाते हैं। डॉक्टर सर्जरी के दौरान उसी स्थान पर फोकस कर पाता है, इसे न्यूरोनैविगेशन कहा जाता है। डॉक्टर का कहना है कि ब्रेन के मरीज चीर-फाड़ वाली सर्जरी से डरते हैं। बाकी डॉक्टरों को भी इस तकनीक को अपनाने की जरूरत है।