क्या आपकी भी हो चुकी है पित्त की थैली की सर्जरी?

  • Magnetic attraction saves a major liver surgery 

सेहत संवाददाता

लिवर को शरीर का सबसे अहम और सबसे बड़ा अंग माना जाता है। जो पाचन क्रिया या खाने को पचाने में अहम भूमिका निभाता है, रोजाना लिवर से लगभग एक लीटर के करीब बाइल या पीले रंग का पित्त निकलता है, जो कि हर रोज गॉल ब्लेडर या पित्त की थैली में जाकर इकट्ठा हो जाता है। यह प्रक्रिया में सिस्टिक डक्ट के माध्यम से होती है। दिन में तीन से चार बार भोजन के समय पित्ताश्य पित्त को निचोड़ता है और खाने को पचाने के लिए आठ सेमी लंबी पित्त की नली के आकार की संरचना के माध्यम से आंतों में भेजता है।

यह तो हुइ एक सामान्य प्रक्रिया, जिसे एक सामान्य व्यक्ति के लिवर द्वारा नियमित रूप से संचालित की जाती है। लेकिन पित्त की थैली में स्टोन या अन्य किसी वजह से इसे निकलवाना भी पड़़ता है। उस स्थिति में लिवर कैसे काम करता है या पाचन क्रिया कैसे प्रभावित होती है?

गॉल ब्लेडर की सर्जरी समान्य रूप से की जाने वाली सर्जरी है, लेकिन पित्त की थैली में गड़बड़ी की वजह से इसे निकालने वाली सर्जरी के दौरान कई बार कई तरह की गड़बड़ी भी हो जाती है। कुछ मामलों में सर्जरी के दौरान, पित्त नली (यकृत से पित्त को आंतों तक ले जाने वाली नली) में अनजाने में चोट लग जाती है, क्योंकि पित्ताशय को हटाने के दौरान इसे सिस्टिक नली के स्तर पर काट दिया जाता है।

पित्त नली में क्षति के कारण लिवर या यकृत में पित्त का संचय हो सकता है, जिससे बार-बार सूजन, दर्द और यकृत में मवाद जमा होने की समस्या उत्पन्न हो जाती है, ऐसी स्थिति में एक कुशल चिकित्सक की जरूरत होती है, जो पित्त की थैली की सर्जरी के दौरान हुई इस गड़बड़ी को बिना अन्य किसी क्षति के सही कर सके।

45 वर्षीय युवक को हुई दिक्कत

वर्ष 2020 में पित्त की थैली की सर्जरी करवा चुके ऐसे ही एक युवक को बाइल डक्ट में परेशानी हुई, जिसके लिए वह दिल्ली के सरगंगाराम अस्पताल में पहुंचे, अस्पताल के लिवर, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और पैंक्रियाटिको-बिलियरी साइंसेज संस्थान के अध्यक्ष डॉ अनिल अरोड़ा ने बताया कि मरीज का इलाज आधुनिक इंडोस्कोपिक गैस्ट्रोइंटेशनल केयर की यूनिट द्वारा किया गया, बाइल डक्ट के रिसाव को मैगनेटिक कंप्रेशन तकनीक के जरिए सही किया गया, जिसमें अधिक चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ी, इस तकनीक का प्रयोग देश के चुनिंदा अस्पतालों में ही किया जाता है। इसके जरिए पित्त की थैली या लिवर की सर्जरी के बाद की गड़बड़ी को सही किया जा सकता है। डॉ अनिल अरोड़ा के अलावा सर्जरी में डॉ. श्रीहरि अनिखिंदी,  डॉ. शिवम खरे, डॉ. उमंग अरोड़ा, डॉ. राघव सेठ और डॉ. अरुण गुप्ता सहित टीम के अन्य सदस्यों ने अहम भूमिका निभाई। टीम ने अहमदाबाद के एंडोस्कोपी विशेषज्ञ डॉ. संजय राजपूत और अहमदाबाद के ही एक इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. मिलन जोलापारा के साथ मिलकर मैग्नेटिक कम्प्रेशन एनास्टोमोसिस जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया।

क्या थी जटिलताएं

डॉ अनिल अरोड़ा ने इस प्रोसिजर के बारे में बताते हुए कहा कि क्षतिग्रस्त बाइल डक्ट के दोनों छोर को 1.5 सेमी की दूरी पर अलग किया गया, और इन छोरों को पारंपरिक इंडोस्कोपिक ब्रिजिंग तकनीक से जोड़ने की जगह मैगनेटिक कंप्रेशर के माध्यम से जोड़ा गया। मैगनेटिक कंप्रेशर के जरिए दोनों छोर में खिंचाव बना रहा, और बाइल डक्ट के रिसाव को बिना किसी टांके के सही कर दिया गया। इससे न सिर्फ रिसाव को रोका गया, बल्कि लिवर की कार्यप्रणाली को भी दुरूस्त किया गया।

 

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