तकनीक से “दिमागी” तकलीफ हुई दूर, EMONEEDS का मिला सहारा

  • सुविधाएं थी नहीं जहां, EMONEEDS पहुंचा वहां
  • 10 हज़ार से ज़्यादा लोगों तक पहुंचने के मिली कामयाबी
  • 150 से ज़्यादा गांव के लोगों को मिला उपचार
  • 78% लोगों में उपचार के बाद दिखा बड़ा सुधार

 

मानसिक स्वास्थ्य यानी मेंटल हेल्थ आज के दौर की बड़ी समस्या में से एक है। एक ऐसी बीमारी जिसको या तो लोग आसानी से नजरअंदाज कर देते हैं। या फिर समझ और सुविधाओं के अभाव में इलाज ढंग से मिल नहीं पाता, पर टेक्नोलॉजी के इस दौर में दूर बैठे इलाज मुमकिन है। ये कर दिखाया है डिजिटल मेंटल हेल्थ को लेकर लंबे अरसे से काम कर रहा EMONEEDS ने। परिणाम भी मिले और 78% लोगों को तुरंत सुधार महसूस हुआ।

बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा, पूर्वोत्तर के राज्य, गुजरात, जम्मू कश्मीर, केरल, लेह, अंडमान निकोबार समेत देश के करीब दो दर्जन राज्यों तक  टेक्नोलॉजी के दम पर पहुंचने में मिली सफलता

सालभर तक प्रोजेक्ट MANAS के तहत हैदराबाद के एनजीओ NAADAM और EMONEEDS ने हाथ मिलाया और अपनी टीम की मदद से 10 हज़ार लोगों तक पहुंचने में कामयाब हुए। उन परिवारों तक जिनमें मानसिक स्वास्थ्य को लेकर या तो समझ का अभाव था या फिर उस इलाके में संसाधन की कमी थी।150 से ज़्यादा सुदूर इलाकों के गांव तक टेली कंसल्टेशन के ज़रिए पहुंचा जा सका।

पेशे से मनोवैज्ञानिक और EMONEEDS की Co – Founder डॉक्टर नीरजा अग्रवाल कहती हैं कि ये मुश्किल काम था जिसको हमने कर दिखाया। आज के दौर ने मेंटल हेल्थ को लेकर लोग ज़्यादा सजग नहीं हैं। वहीं, क्या शहर और क्या गांव हर जगह इस समस्या से लोग जूझ रहे हैं और तो और युवाओं में ये समस्या बढ़ती जा रही है।

इस मुहिम के दौरान 21 से 30 की उम्र के युवा की मौजूदगी ज़्यादा दिखी। कुछ तकलीफ के साथ आए तो कुछ तकनीक में अच्छा होने की वजह से परिवार के बीमार लोगों को जोड़ पाए। डॉक्टर नीरजा कहती हैं कि देश में उतने मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिकों नहीं जिससे तमाम जरूरतमंद लोगों को उपचार मिल सके, पर टेक्नोलॉजी के दम पर ये मुमकिन है और हमने करके दिखाया।

MANAS मुहिम के तहत, डिप्रेशन, एंजाइटी, सीज़ोफ्रेनिया, ओसीडी, बाईपोलर डिसऑर्डर जैसी समस्या से पीड़ित मरीजों को EMONEEDS के मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक, काउंसलर्स की टीम ने देखा जो टायर 2, 3 या फिर, सुदूर ग्रामीण इलाकों में थे। EMONEEDS के सह संस्थापक रजत गोयल ने कहा कि सुदूर देहात में रह रहे मेंटल हेल्थ के मरीजों तक पहुंचने का ये एक मौका था, लेकिन इसी बहाने न केवल हम उन तक पहुंच पाए बल्कि, उन परिवारों की राह भी आसान कर पाए जिनका अपना कोई बीमार था।

एक आंकड़े के मुताबिक भारत की आबादी के 11 – 12 फीसद लोग किसी न किसी मानसिक समस्या की चपेट में हैं। ये आंकड़ा बड़ा है। हर जगह इसके उपचार की फैसिलिटी नहीं। लिहाज़ा किस तरह से तकनीक कारगर हो सकता है उसकी ये मुहिम एक झलक भर है। डॉक्टर नीरजा अग्रवाल की मानें तो मेंटल हेल्थ से पीड़ित लोगों को अगर सही वक्त पर इलाज नहीं मिला तो ये बीमारी बढ़ती जाती है और ठीक होने की गुंजाइश कम होती जाती है। इस पहल के दौरान ऐसे मरीज़ भी मिले जिनको अस्पताल में दाखिल करवाने की नौबत भी दिखी। अगर परिवार पहले से सजग और सचेत होता तो शायद भर्ती करवाने की नौबत हो नहीं आती।

सालभर तक चले MANAS मुहिम के ज़रिए EMONEEDS के डॉक्टरों की टीम के ज़रिए मरीजों को फ्री में टेली कंसल्टेशन दिया गया। तकलीफ में जी रहे 18 साल से लेकर बुजुर्गों तक पहुंचा गया और ओपीडी से लेकर, असेसमेंट और उनको लेकर कॉम्प्रिहेंसिव ट्रीटमेंट प्लान तैयार किया गया।

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