नई दिल्ली,
पचास साल की उम्र के बाद स्वास्थ्य की अन्य जांच में पेशाब की जांच को भी शामिल करना चाहिए। पचास प्रतिशत बुजुर्गो को 50 साल के बाद प्रोस्टेट बढ़ने की शिकायत रहती है। बार-बार पेशाब का अनुभव या फिर दर्द व पेशाब से खून आना बढ़े प्रोस्टेट के प्रमुख लक्षण हैं। बुजुर्गो में उम्र के साथ होने वाली बीमारियों में प्रोस्टेट को मुख्य रूप से शामिल किया गया है। लेकिन अधिकांश लोगों को इसके बढ़ते खतरे का पता तब चलता है जबकि इसकी वजह से किडनी की कार्यप्रणाली बाधित होने लगती है।
उम्र बढ़ने के साथ यदि आप कोलेस्ट्राल, बोन डेंसिटी और शर्करा की जांच करा रहे हैं तो नियमित जांच में प्रोस्टेट जांच को भी शामिल कर लिजिए। इस संदर्भ में सितंबर महीने को प्रोस्टेट जागरुकता माह के रूप में मनाया जा रहा है। यदि बीमारी का लक्षण पेशाब करने में दिक्कत के रूप में सामने आ रहा है तो इस स्थिति को बीपीएच (बिनाइन प्रोस्टैटिक हाइपरपलासिया) कहते हैं। सरगंगा राम अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. सुधीर चढ्ढा ने बताया कि 90 फीसदी मामलों में बढ़े प्रोस्टेट का सफल इलाज किया जा सकता है। मधुमेह और दिल की बीमारी के शिकार लोगों के लिए लेजर युक्त होलेप विधि से बिना चीर फाड़ के प्रोस्टेट को निकाला जाता है। पेशाब संबंधी तकलीफ को लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं, जिसका असर किडनी की कार्यप्रणाली को प्रभावित कर, यूरिनरी टे्रक्ट के मार्ग को भी अवरूद्ध कर देता है। इस स्थिति में कैथेटर द्वारा पेशाब कराया जाता है। डॉ. चढ्ढा ने बताया कि सामान्य प्रोस्टेट का वजन 14 से 20 ग्राम के बीच होता है, जबकि प्रोस्टेट बढ़ने से यह 424 ग्राम तक के वजन तक पहुंच जाता है। पांच प्रतिशत मामलों में प्रोस्टेट कैंसर युक्त होता है। प्रोस्टेट बढ़ने से बचाव के हालांकि अधिक स्पष्ट कारण पता नहीं हैं, बावजूद पचास साल की उम्र के बाद साल में एक बार पीएसए जांच करा लेनी चाहिए। केवल दो प्रतिशत मामलों 40 की उम्र के बाद प्रोस्टेट का खतरा देखा गया है।
क्या है जांच विधि
डिजिटल रेक्टर जांच- इस विधि से रेक्टूम के रास्ते से पेशाब की थैली के पास स्थित प्रोस्टेट के नाप व वजन का अंदाजा लगाया जाता है। हालांकि इस विधि को अधिक कारगर नहीं माना जाता है। इस जांच के बाद पीएसए जांच की सलाह दी जाती है।
पीएसए-(प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटिजन)- इस विधि से प्रोस्टेट के कैंसर युक्त होने का पता लगाया जाता है। इस विधि से प्रोस्टेट ग्रन्थि से उत्पन्न होने वाले प्रोटीन की रक्त में उपस्थिति का पता लगाया जाता है।
साइटोस्कोपी-इस जांच में प्रोस्टेट के सटीक आकार का पता लगाने के लिए ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है। साइटोस्कोपी में लेंस की मदद से यूरिनरी बैग के पास स्थित प्रोस्टेट के आकार का पता लगता है।
क्या है इलाज
सर्जिकल और नॉन सर्जिकल दोनों विधि से प्रोस्टेट का इलाज किया जाता है। प्रोस्टेटक्टोमी में शल्य क्रिया द्वारा प्रोस्टेट के बढ़े हुए हिस्से को निकाला जाता है। इसके अलावा होलेप विधि में बिना सर्जरी कर ग्रन्थि के बढ़े हुए हिस्से को कम किया जाता है। जबकि दो प्रतिशत मामले में दवाओं से से भी ग्रन्थि को सही किया जाता है।