मेथी से बनी आयुर्वेदिक दवा करेगी शुगर कंट्रोल

CSIR has prepared a medicine to control sugar. This can be used by people whose blood sugar is uncontrolled or whose weight is more than normal.
  • सीएसआईआर ने बनाई मधुमेह नियंत्रण की दवा
    – छह आयुर्वेदिक जड़ी बुटियों के रस को किया इस्तेमाल
    नई दिल्ली, 

किचन में खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की गई मेथी शुगर को भी नियंत्रित कर सकती है। मेथी सहित अन्य पांच औषधीय जड़ी बूटी के महत्व को पहचानने के बाद सीएसआईआर ने शुगर को नियंत्रित करने की दवा तैयार की है। जिसे ऐसे लोग इस्तेमाल कर सकते हैं जिनके खून में शुगर अनियंत्रित हैं या फिर उनका वजन सामान्य से अधिक है। संस्थान ने किडनी, तनाव और अनियंत्रित जीवन शैली से जुड़ी अन्य बीमारियों से बचाव के लिए भी दवा तैयार करने पर शोध शुरू किया है।
वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद और एनबीआरआई (राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिक डॉ. एकेएस रावत ने बताया कि मधुमेह की शुरूआत शुगर के अनियंत्रित होने से होती है, जिसका असर वजन बढ़ने के रूप में सबसे पहले नजर आता है। सीएसआरआई द्वारा तैयार दवा बीजीआर-34 को इस संदर्भ में कारगर माना गया है जो मरीजों की इंसुलिन पर निर्भरता कम करती है। अध्ययन के दौरान देखा गया कि जिन मरीजों को पहले दिन में दो बार इंसुलिन लेनी पड़ती थी मधुमेह की अन्य दवाओं के साथ आयुर्वेद की इस दवा को लेने के बाद उन्हें दिन में एक बार ही इंसुलिन लेना पड़ा। सीएसआईआर के निदेशक डॉ. डीके उप्रेती ने बताया कि सफल परिक्षण के बाद बीजीआर के निर्माण का जिम्मा एमिल कंपनी को दिया गया, जिसकी मदद से अब तक एक लाख लोग दवा का सेवन कर चुके है। इसमें शुगर का स्तर पहले की अपेक्षा अधिक नियंत्रित देखा गया। डॉ. उप्रेती ने बताया कि एलोपैथी दवा के नकारात्मक असर को कम करने के लिए अब कैंसर, दिल और मस्तिष्क की बीमारी के इलाज के लिए भी मरीजों को एलोपैथी के साथ आयुर्वेदिक दवा दी जाएगी। अगले चरण में परिषद ने किडनी की दवा का परिक्षण किया है।

कैसे हुआ शोध
खून में शुगर को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाने वाली मेथी सहित 34 अन्य आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के सत या रस का लैबारेटरी में परीक्षण किया गया। इसमें से छह जड़ी बूटियो को अधिक बेहतर माना गया, जिसे बीजीआर-34 बनाने में प्रयोग किया गया। लैबोरटी में तैयार आयुर्वेदिक दवा का सौ मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल किया गया, इन मरीजों में 50 को मधुमेह था जबकि 50 सामान्य थे। चार महीने के इस्तेमाल के बाद मधुमेह के शिकार मरीजों की इंसुलिन पर निर्भरता कम हुई जबकि सामान्य मरीजों के खून में शुगर का स्तर सामान्य हो गया। दरअसल जड़ी बूटियों में शुगर को नियंत्रित करने वाले बायो एक्टिव मार्कर देखे गए, जिन्होंने पैंक्रियाज में बनने वाले इंसुलिन को बढ़ने नहीं दिया।

अन्य किसी कंपनी को नहीं दिया एनएनओसी
“आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने वाली कई निजी कंपनियां इस तरह की दवा का दावा करती हैं लेकिन सीएसआरआई ने किसी भी कंपनी को ऐसे किसी उत्पाद को स्वीकृति नहीं दी है और न ही उनका क्लीनिकल ट्रायल का प्रोजेक्ट संस्थान को भेजा गया है। सीएसआईआर ने एक मात्र एमिल कंपनी को बीजीआ-34 के वितरण का जिम्मा दिया है। यदि कोई ऐसा दावा करता है तो वह भ्रामक हो सकता है ”
डॉ. डीके उप्रेती, निदेशक, सीएसआईआर व एनबीआरआई

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